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मिलन उत्सव - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

मिलन उत्सव

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*मिलन उत्सव*

सरहद पर गहमागहमी है। दिवाली पर तो बाघा बॉर्डर पर विशेष सतर्कता बरती जाती है। पड़ोसी देश की सेना और भी मुस्तैद हो जाती है। कहीं पुनः उन्हें लंका जैसी हार ना सहनी पड़े।
किन्तु हमारे राजनेताओं से लेकर सामान्यजन तक दीपोत्सव की खुशियों में सरोबार हो जाते हैं।
शुभ मुहूर्त में लक्ष्मीपूजा के साथ ही ढोलधमाके, आतिशबाजी व मिठाइयों का दौर शुरू हो जाता है। उपस्थित जनसमूह भी खुशी से नाचने लगता है।
पटाकों के शोर के साथ मिठाइयों के थाल बॉर्डर पर तैनात सैनिक बन्धुओं के लिए लेकर जा रहे हैं। शोर सुन कर सामने सेना की कतार बन्दूकें तान लेती है।
तभी मनोहारी आवाज़ सुनाई देती है, " शुभ दीपावली, लीजिए मुँह मीठा कीजिए। मेलजोल का त्योहार है न, आज के दिन हम मित्र हैं। "
रसगुल्लों की मिठास माहौल में घुल जाती है। और तौहफ़ों का दौर शुरू हो जाता है।
सरला मेहता
इंदौर

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दादी की परी
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