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कवितानज़्म
आईना हम से हमारी पहचान पूछता है नकाब पहना है जो चेहरे पर उसे उतारने को कहता है आज कल आइना भी हक़ीक़त में आने को बोलता है अलग सी शिकायतों से घेरता है आज कल आईना भी अलग से कटघरे में खड़ा सा करता है आईना __prabha Issar