कविताअतुकांत कविता
*अपना अपना रावण*
हर जीवात्मा में बसता है
रावण या सदाचारी राम
बुराई का प्रतीक रावण
तो अच्छाई दर्शाते राम
काम क्रोध लोभ मोह मद
जो देते तिलांजलि इनको
वो हैं राम जैसे चरित्रवान
लिखा जाते इतिहास में नाम
पाँच विकारों से वशीभूत हो
जो बन जाते दुष्ट दुराचारी
सिया हरण सा पाप करते
जग में कहलाते हैं ये रावण
मानव स्वकर्मो से ही बनता
जो वो चाहे,रावण या राम
क्यूँ न हरादें अपने रावण को
बन जाएँ मर्यादा पुरुषोत्तम
हरा कर दशाननी विकारों को
दशरथसुत राम ही बन जाएँ
करें स्थापना रामराज्य की
धरा पर स्वर्ग अब उतार दें
आज सबके अपने रावण हैं
रिश्तों,कुर्सी की मारामारी में
अत्याचार, अनाचार आतंक में
महाभारत का बोलबाला है
सरला मेहता
इंदौर