कहानीलघुकथा
चाय की प्याली
वसुधा व्हील चेअर पर बैठी अतीत की उन यादों में खो जाती है.....जब वे सासू माँ के साथ अदरक इलायची वाली चाय की चुस्कियां विभिन्न चर्चाओं के साथ पीती थी। ना जाने कौन कौन से किस्से
फुर्सत में बैठे ठाले दर परत दर खुलते जाते थे । दिन भर की बातों का कोटा एक चाय की प्याली में पूरा हो जाता था।सासू माँ स्वर्ग क्या सिधारी वो चाय की प्याली भी अपने साथ ले गई। बहु को अपनी समाज सेवा किटी पार्टी से फुरसत कहाँ ?
हाँ, जब से पोता बहु आई है,वही सिलसिला पुनः आरम्भ हो जाता है।ऑफिस से आते ही वह दादी के हाथ की महकती स्वादिष्ट चाय गप्पों के साथ पीना नहीं भूलती। वसुधा भी उन चंद लम्हों में चौबीस घंटों की ज़िंदगी जी लेती।परन्तु एक टीस उन्हें सालती, " काश,इस चाय गोष्टी में उनकी बहु भी शामिल हो जाती। सासूमाँ के साथ कब केतली भर चाय खतम हो जाती पता ही नहीं चलता। "
वसुधा की बस एक ही चाह है कि उनकी बहु भी अपनी बहु के साथ शकर चायपत्ती की तरह घुलमिल जाए।अब तो किस घड़ी बुलावा आ जाए,पता नहीं।और सचमुच एक दिन वसुधा जी शामों की यादें समेटे चल बसी। बहु अब व्यस्त है शोक बैठक में..
कौन आया,कौन नहीं आया..
सारे ब्यौरे का हिसाब किताब करने में।तभी बहु थमा देती है वही गरमा गरम चाय की प्याली।चाय देख कुछ याद करती हुई बहु को ताक़ीद देती है,"देखो,सब आने वालों को अदरक इलायची वाली चाय पिलाना मत भूलना।और माँजी को भी सुबह शाम चाय का भोग लगाना भी याद है न।"
सरला मेहता
मौलिक