कहानीलघुकथा
जय भवानी
मध्यरात्रि में पर्यटन बस सामान्य गति से जा रही थी। घुप अँधेरा, ऊपर से जंगली जानवरों की आवाज़ें। सारे यात्री सहमे बैठे अपने इष्टदेवों को याद कर रहे थे। वृद्ध, साथ के युवाजन को सांत्वना दे रहे थे।
तभी सामने पड़ी झाड़ियों से हिचकोले लेती बस एक झटके से रुक गई। और छः सात पिस्टलधारियों ने कंडक्टर को गेट खोलने को मज़बूर कर दिया। सक्षम यात्री मौका देख कर निकल लिए, बचे ड्रायवर केबिन में बैठे दो अधेड़ पुरुष, दो किशोरियाँ व दो वृद्धाएँ ।
रुपए ज़ेवर लूट कर दो जवान लुटेरों को छोड़ शेष सब बस से उतर गए। सीट के पीछे दुबकी लड़कियाँ उनकी नजरों से बच नहीं पाई। वे उनकी ओर लपकते, तब तक माला जपती वृद्धाओं ने लोहे की रॉड्स नीचे से सरका दी।
दोनों लड़कियां डर से काँप रही थी। दादियाँ हनुमान चालीसा ऊँची आवाज़ में जपने लगी, " या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता,,,"
ये बुढ़ापे को ढोती हुई लाचार स्त्रियाँ बस यही कर सकती थी। जाप करते करते वे बच्चियों को कहने लगी, " डरो नहीं, हिम्मत रखो और सामना करो। शोर से गुंडे भी कुछ विचलित हुए। पुरुष भी जोर जोर से जाप करने लगे। इतने में लड़कियों ने जय भवानी चिल्लाते हुए रॉड उठा अँधेरे में घुमाने लगी। वार पे वार करने से गुंडे घायल हो लड़खड़ाने लगे। तभी झाड़ियाँ लिए बस यात्रियों ने दोनों को पकड़ लिया।
सरला मेहता
इंदौर