कहानीलघुकथा
*मेरे पापा*
नीनू क्विज़ प्रतियोगिता की तैयारी करते सोचने लगी, " काश ! मम्मा होती। चुटकी में तमाम प्रश्नों के हल बता देती। नहीं पता होता तो वह कैसे भी ढूंढ लेती। पापा तो मुझे अपशगुनी मान बैठे हैं। मुझको बचाने में ही तो मम्मा ट्रक की चपेट में आ गई थी। "
विमाता हेमा, नीनू की मदद करना चाहती है। लेकिन नीनू उन्हें अभी तक माँ नहीं मान पाई है।
हेमा, नीनू का चार्ट देख कर प्रश्नों के उत्तर निकाल कर टेबल पर चुपचाप रख देती है। एक चिंता उसे खाए जा रही है। क्विज़ प्रतियोगिता में जाने के लिए वह पति को कैसे मनाएगी ? कुछ तो करना होगा।
नीनू मंच पर अपने ग्रुप के साथ चर्चा कर रही है। सामने हेमा को बैठा देख कर उसे अपनी मम्मा की याद आ जाती है," कितने उत्साह से वह चीयर अप करती थी। इशारों से आश्वस्त करती कि सब ठीक होगा। "
वह मन में प्रार्थना करती है कि कहीं से मेरे पापा आ जाए।
क्विज़ में नीनू की टीम जीतती है। उसका नाम विशेष पुरुस्कार के लिए पुकारा जाता है। नीनू की नजरें पापा को तलाश रही है। तभी उसे सामने पापा दिखाई देते हैं। वे प्यार से हाथ हिलाकर अपनी खुशी जता रहे हैं।
नीनू चिल्लाकर कहती है, "मैं मेरे पापा के हाथ से शील्ड लूँगी। " हेमा आंखों में आँसू व ओठों पर मुस्कान लिए तालियाँ बजा रही है।
सरला मेहता
ईन्दौर