Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
खिचड़ी - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

खिचड़ी

  • 169
  • 7 Min Read

*खिचड़ी*
गुलाबो और सरबती, जिठानी देवरानी हैं। जबसे छठी पास सरबती ब्याह कर आई, गुलाबो को मानो एक सहेली ही मिल गई।
गुलाबो को पीहर चिट्ठी भेजनी है, सरबती झट से लिख देती।
ऐसा दकियानूसी ससुराल इनके ही भाग्य में लिखा था। मुँह अंधेरे उठ घूघट डाले काम करते रहो। बस दुपहरी में जब सब सुस्ताते, दोनों छत पर गप्पे मारने लगती।
" अरी सरबती ! मुझे भी पढ़ना लिखना सिखादे रे।"
" हाँ जिज्जी सिखा तो दूँ पर किताब कॉपी हो तब ना। "
दोनों की गुफ़्तगू पड़ोस में रहने वाली आंगनवाड़ी कर्मी गंगा भुआ सुनकर हँसती हैं, " वो तो मैं ला दूँगी पर तुम्हारी सासु माँ मुझे खा जाएगी।"
सरबती खुश हो जाती है, "भुआ ! आप तो किताब कॉपी ला दो, सासु माँ को पता भी नहीं चलेगा। मेरा आठवीं का फॉर्म भरवा दो आप। जिज्जी को मैं पढ़ा दूँगी। "
बस दोनों बहुएँ जब भी वक़्त मिलता अपनी पढ़ाई शुरू कर देती। सासु माँ भी खुश कि जिठानी देवरानी कितने प्रेम से रहती हैं। समझदार सरबती मौका देखकर अपने पति को भी सारी बातें बता देती हैं। हाँ, जेठजी के तेवर ज़रा अलग हैं।
मर्दों की ग़ैरमौजूदगी में कोर्ट से कुछ कागजात आते हैं। सरबती मिनटों में सब लिखापढ़ी निपटा देती है।
सासु माँ बड़ी खुश, " मेरी बहू तो बड़ी होशियार है।"
तभी गंगा भुआ आकर कहती हैं, " अम्मा जी लड्डू खिलाओ, आपकी सरबती ने आठवीं पास कर ली है। "
सासु माँ आँखे तरेरते हुए बहुओं को देखती हैं, "अच्छा तो ये खिचड़ी पक रही है। और खिचड़ी में घी का तड़का गंगा भुआ ने लगा दिया है।"
सरला मेहता
इंदौर
स्वरचित

logo.jpeg
user-image
दादी की परी
IMG_20191211_201333_1597932915.JPG