कहानीलघुकथा
दोस्ती
अतीत की यादों में खोई संजना यूँ ही फेसबुक पर दिल बहला रही थी,,,,
" अरे! यह तो सोनल है, मेरी प्रिय सखी। "
बस संजना लगी खगालने सोनल की प्रोफाइल, " ओहो ! इसी शहर में। फ्रेंडशिप डे का इतना प्यारा तोहफ़ा मिल गया। "
फ़टाफ़ट सोनल के पति के ऑफिस से पता पूछा और चल दी बेटे पार्थ का हाथ थामे। बताई हुई कॉलोनी में मकान नं इतने गड़बड़ थे कि सखी का घर नहीं मिल रहा था। मैदान में खेल रहे बच्चों से पूछते हुए एक प्यारी सी बच्ची पर नज़र पड़ी। उसकी सूरत में सोनल की झलक दिखी,
" गुड़िया !, क्या नाम है आपकी मम्मा का और आपका ? "
मासूम बच्ची झिझकते हुए दोनों के नाम बताती है।
संजना भावविहल होकर उसे चूमती है , " जुही ! मुझे अपने घर ले चलो। मैं आपकी मम्मा की सहेली हूँ। "
सोनल दरवाज़े पर अपनी दोस्त को देख खुशी से पागल हो उससे गले मिलती है, " इतने सालों बाद मिले हैं हम।"
" यह तो तेरी बेटी की सूरत का कमाल है कि मैं तुझे ढूंढ पाई। "
पार्थ व जुही अपनी मम्मियों की बातें बड़े गौर से सुनते हैं और मुस्कुराते हैं।
सरला मेहता
स्वरचित
इंदौर