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ये साँसे हैं हमारी - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

ये साँसे हैं हमारी

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  • 4 Min Read

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*ये साँसें हैं हमारी*

सुखपुर को आदर्श ग्राम का दर्ज़ा मिला है। मंत्री महोदय आ रहे हैं। पी डब्ल्यू डी वाले ताबड़तोड़ गाँव को मुख्य सड़क से जोड़ने के लिए सर्वे कर रहे हैं, " सीधी सड़क के लिए राह में आने वाले पेड़ों को काटना पड़ेगा।"
गाँव में यह खबर बिजली की तरह फैल गई। बुज़ुर्ग बोले, " ये सरकारी लोग कहाँ मानने वाले। पेड़ों को काटकर ही दम लेंगे।"
लेकिन सुखपुर के जागरूक नौजवानों ने हरे भरे वृक्षों को बचाने का बीड़ा उठाया। वे पहुँच गए कार्यस्थल पर, " सर! हम पेड़ों को प्रतिस्थापित करना चाहते हैं। हम उन्हें जड़ से उखाड़ कर कहीं और लगा देंगे। ये साँसें हैं हमारी। हम सब मदद करने को तैयार हैं।"
अधिकारी आपस में चर्चा करने लगे, " भई! इनका सुखपुर यूँ ही आदर्श नहीं बना। इन गांव वालों ने बनाया है।"
स्वरचित
सरला मेहता
इंदौर

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