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उचित फैंसला - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

उचित फैंसला

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*उचित फैसला*

कई दिनों से बुझे बुझे से रहने लगे थे जज साहब। आज प्रसन्न मुद्रा में देख पत्नी कारण जाने बिना कैसे रहती। जज सा, बोले, "रेणु, वो मैंने डॉ जोड़े के तलाक का बताया था न। आज वही डॉ नारी कल्याण मीटिंग में मिल गई। मैं ख़ुद को रोक नहीं पाया। पूछ ही बैठा कि दोनों इतने क़ाबिल खुशहाल व ऊपर से प्रेम विवाह फ़िर तलाक क्यों लिया। यह तो कोई कारण नहीं हुआ कि प्रथक समाज के होने से आचार विचार नहीं मिलते। "
डॉ बोली, " मेरे पति बहुत अच्छे हैं। मेरे ख़ातिर वे शाकाहारी हो गए। मुझे चाहते भी बहुत हैं। मेरे माँ पापा को सम्मान भी देते है। ससुराल वालों से भी मुझे कोई शिकायत नहीं है,,,।
तभी एक आया प्यारी सी बच्ची को लाकर बोली, "मेडम, परी का फीडिंग टाइम हो गया।"
रेणु नारी सुलभ व्यग्रता से पूछती है, "अरे बेटी भी हो गई। अवश्य तलाक के समय वह गर्भवती होगी। अच्छा तो आगे क्या बताया उसने?"
जज सा बोले, " डॉ, बेटी को दूध पिलाकर कमरे से बाहर आई। दुखी हो बताने लगी," पति लिंग परीक्षण हेतु दबाव डालने लगे। ये सब मेरे लिए दारुण प्रताड़ना से कम नही था। मैं सब कुछ उज़ागर कर डॉ पेशे पर दाग़ नहीं लगाना चाहती थी। मैं एक डॉ होकर ईश्वर की भेट को कैसे नकार सकती थी। मैंने पता नहीं लगाया कि मेरे गर्भ में बेटी है या बेटा। मुझे यह भी विश्वास नहीं था कि बेटी होने पर वे उसे अपना लेंगे। मेरे लिए आज तक यह पहेली बनी हुई है कि वे बेटी क्यों नहीं चाहते। फ़िर मेरे लिए तलाक़ के सिवा और कोई चारा नहीं था।"
रेणु आश्वस्त हो बोली, "अच्छा फैसला लिया डॉ बिटिया ने।"
और जज साहब सोचने लगे कि उनका फैंसला सही था। वे यूँ ही पश्चातसप की आग में जल रहे थे।
सरला मेहता
स्वरचित
इंदौर

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दादी की परी
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