कहानीलघुकथा
मिमी को मिली मोहलत
" बिन्नो बिन्नो ! मैं तेरे बापू के साथ पटेल के खेत पर गेहूँ कटाई की मजदूरी पर जा रही हूँ। बकरी व उसकी मिमी का ध्यान रखना। " हिदायत देकर रम्भा पति के साथ बगल में रोटी साग की पोटली दबाए चल दी।
बिन्नो को मिमी का साथ क्या मिल जाता कि वह दुनिया के सारे काम भूल जाती है। मिमी के साथ खेलते उसकी चोटी हवा में लहराने लगती है।
इतनी जोर से खिलखिलाती है कि उसके गुलाबी गालों पर पड़े गड्ढे कश्मीर सेब की याद दिला देते हैं। बच्चे तो उसे देखते ही चिल्ला पड़ते,
" ये देखो ! सेवफल आ गया। "
मस्ती में मगन मिमी बकरी को बांधना ही भूल जाती है। बकरी भागती हुई एक खेत में नाश्ता करने पहुँच जाती है। खेत मालिक उसे सीधा कांजी हाउस में पहुंचा देता है।
इधर मिमी, माँ के दूध के बिना मिमिया रही है। बापू सरपंच जी के हाथ पाँव जोड़ते हैं। लेकिन सरपंच को सौ रुपये जुर्माना चाहिए।
तभी बिन्नो हाथों में बेहाल मिमी को उठाए आती है।
सरपंच की माँ को बिन्नो की मासूमियत पर दया आ जाती है। वे अपने बेटे से कहती है, " सौ रुपये मिल ही जाएंगे। बस बकरी को इतनी मोहलत तो दे सकते हो कि वह बच्चे को दूध पिला दे।
सरला मेहता
स्वरचित