Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
तीसरा नेत्र - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

तीसरा नेत्र

  • 302
  • 6 Min Read

*तीसरा नेत्र*

अपने कुम्भकार बापू को देवी माँ की मूर्ति गढ़ते देख बिजुरी स्वयं को रोक नहीं पाई, " बापू बापू ! इस बार मैया की प्रतिमा मैं जैसे बताऊँ वैसे ही बनाना। "
बापू अचंभित, " क्यों बेटी ! अपनी मूर्तियों को तो लोग बहुत पसंद करते हैं। हमें मुँह माँगे दाम भी मिल जाते हैं। "
" अरे बापू ! अभी हमारी देवियाँ कितनी सुंदर लग रही हैं। गोरे आनन पर लंबे श्याम केश, मोहक नैन-नक्श, गुलाबी अधर और ऊपर से सौलह श्रृंगार। "
मैं कुछ समझा नहीं, मेरी लाड़ो। "
" बस बस, कूची हटाइए। मा के भाल पर यह तीसरा नैत्र मत बनाइए।
आप सचमुच अपने किए धरे पर पानी फेर रहे हैं। "
बिजुरी की बात सुनकर माँ बापू दोनों चौंके, " क्या बेहूदी बात कह रही है रानी। अरे यह तो मैया का तीसरा गुप्त नैत्र है। यह आँख माँ विपत्ति के वक़्त ही खोलती है। यह अति शक्तिशाली है। हर बुराई दुष्टता क्रूरता को भस्म करने की क्षमता रखती है यह तीसरी गुप्त आँख। हाँ, दुर्जनों को डराने के लिए हमें मूर्ति पर इसे उकेरना चाहिए।"
" अच्छा अब समझी, माँ हमेशा याद दिलाती है कि खतरे की घण्टी बजने पर अपना ध्यान आत्मा पर केंद्रित करो। हर संकट का सामना करने के लिए अपनी यह तीसरी इन्द्रिय खोलो। हाँ बाबा, आज मैं अपने हाथों से देवी माँ का यह दिव्य नैत्र बनाऊँगी। "
स्वरचित
सरला मेहता
इंदौर

logo.jpeg
user-image
दादी की परी
IMG_20191211_201333_1597932915.JPG