लेखआलेख
संस्मरण
और प्रमाण मिल गया*
पूरे भारत में देवी की उपासना बड़ी श्रद्धा भक्ति से की जाती है।
हमारे परिवार में भी नवरात्रि में माँ अम्बे की पूजा आराधना नियमों का पालन करते हुए की जाती है। घट स्थापना करते हैं और रोज स्वच्छता से पूजन आरती
करते हैं। अष्टमी से ही नवमी के लिए भोग सामग्री स्नान करके रेशमी वस्त्रों में बनाते हैं। नवमी के दिन देवी का भोग ग्रहण करके ही और कुछ खाते हैं। जब भी नवरात्रि आती है मुझे पोती पँखुरी के साथ घटित वाक़या याद आ जाता है।
पँखुरी चार वर्ष की थी। नवमी वाले दिन बहू पूजा की तैयारी कर रही थी। पोती को नहलाकर उससे कहा कि आरती के पहले घर से बाहर नहीं जाना।
चूंकि वह पड़ोसवाली आँटी के यहाँ अक्सर खेलती रहती। आँटी बड़े प्यार से उसे बहला कर कुछ कुछ खिला भी देती। हाँ, ख़ुद के घर पर खाने में नखरे करती थी। उस दिन भी देवी का भोग लिए बगैर वहॉं पोहे खाकर आ गई।
अभी पूजा समाप्त ही हुई थी कि पँखुरी को तेज़ बुखार के साथ शरीर पर लाल लाल दाने उभर आए। हालांकि मीजल्स ही था किंतु एक तरह से माता का रूप ही था।
देवी माँ की नाराज़ी का प्रत्यक्ष प्रमाण ही था।
हमने उसी समय माँ से क्षमा माँगी व नारियल चढ़ाने की मन्नत मानी।
इस घटना के बाद से हम बहुत सतर्क हो गए।
भविष्य के लिए पूजा का समय प्रातःकाल का ही निश्चित कर लिया। बच्चों को यदि खाने के लिए थोड़ा रुकने को कहते हैं
तो उन्हें भूख अवश्य लग जाती है। नियम धर्म का पालन ज़रूरी है। सच मैया की माया अपरम्पार है। जय माता की।
स्वरचित
सरला मेहता
इंदौर