लेखअन्य
महिलाओं की सुरक्षा पर जब दिमाग केंद्रित होता है तो मन बड़ा खिन्न सा हो जाता है। महिलाओं के साथ आज घटनाएं आम बात हो गई हैं। हद तो तब हो जाती है जो दो-चार साल की मासूमों के साथ कोई घटना होती है। गांव से लेकर शहर तक युवतियां व महिलाएं कितनी सुरक्षित हैं यह बात किसी से छिपी नहीं है। यह सब देखते हुए मन में सवाल उठता है कि आखिर इन घटनाओं पर विराम कौन लगाएगा? क्या शासन और प्रशासन इन घटनाओं को रोक सकने में सक्षम है? वैसे सरकार व अधिकारियों को कोसते रहने से क्या फायदा? क्योंकि बालातकर जैसी निर्मम घटना, घटित होने से पहले, उस कृत्य करने वाले के मन में घटित होती है कानून उस घटना के बाद का विषय है पर उस कार्य को करने का पहला घटनास्थल उसका मन है। इन घटनाओं को अंजाम देने वाले लोग समाज के बीच से ही हैं, ऐसे में समाज की जिम्मेदारी बनती है कि इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने वालों के खिलाफ सख्त कार्यवाही भी तथा बाल्य काल से ही बच्चो के शील निर्माण व चरित्र निर्माण पर विशेष ध्यान देना चाहिए। समाज के हर वर्ग और उम्र की महिलाओं की सुरक्षा को लेकर संवेदनशील होना पड़ेगा। जिस देश में महिलाओं व युवतियों को देवी तुल्य माना गया है, उसी देश में उनके साथ इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने वालों को समाज के लोग कैसे सहन कर सकते हैं? जहां तक मैं समझता हूं महिलाओं से जुड़े अपराध को रोकने के लिए आम जनता को आगे आने की जरूरत है। क्योंकि जब तक हम सब किसी बात को लेकर आगे नहीं आएंगे, हैवानियत भरी घटनाओं को अंजाम देने वालों के हौसले बुलंद होते रहेंगे। ऐसे अपराधियों को कानून से तो दंड मिलना ही चाहिए , समाज का भी फर्ज बनता है कि वह उसे दंडित करे ऐसे लोगों का सामाजिक बहिष्कार किया जाना महिला सुरक्षा के हित में होगा। रेप पीड़िता को हेय दृष्टि से देखने के बजाय समाज के हर वर्ग को मिलकर उसकी मदद करनी चाहिए, इतना ही नहीं, उसे इंसाफ दिलाने के लिए आगे भी आना चाहिए, क्योंकि इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने वाले लोग इंसानी समाज के माथे पर किसी कलंक से कम नहीं हैं। केवल हरिद्वार जिले को ही नही पहाड़ी क्षेत्रों में भी देखें तो विगत वर्षों मे रेप और महिला उत्पीड़न जैसी घटनाएं काफी बढ़ी हैं।