कविताअतुकांत कविता
हरी हिना लाल रंग
हरी हिना जब रच जाती है
लाल लाल मेहन्दी महकाती
सुहागिनों का दिल बहकाती
नारी का गहना बन जाती है
जब दुल्हन की डोली सजती
लाली बन शरमा शरमा कर
पिया जी का नाम लिखाती है
नारी का गहना बन जाती है
जब गोदी में मुन्ना लल्ली खेले
ममता बनकर इठला जाती है
घर-अँगना में खुशियां छाती
नारी का गहना बन जाती है
जब सावन की दस्तक होती
झूले की शान में चाँद लगाती
सजना की याद दिला जाती
नारी का गहना बन जाती है
भारत की पुरातन परम्परा है
लालिमा में कितना शगुन भरा
बाला से प्रौढ़ा के मनको भाए
नारी का गहना बन जाती है
सरला मेहता
स्वरचित
इंदौर