कवितारायगानीनज़्मअतुकांत कवितालयबद्ध कविताचौपाईअन्यगीत
इंदु महोदधि से सिंधु नदी तक, तब हिंदुस्तान कहलाता था,
विश्व को ज्ञान दिलाने का साहब, श्रेय इसी को जाता था,
विज्ञान, सभ्यता, संस्कृति सारी, हमसे ही सबने सीखा था,
एकता के कारण जहां पर न कोई अक्रांता तब जीता था,
कुछ लालसी जयचंद ने फिर छल देश के साथ शुरू किया,
तब जाकर ये हिंदुराष्ट्र कट कटकर छोटा छोटा होता गया,
आओ अब हम संकल्प लें कि और न इसको छोटा होने देंगे,
भारत का बंटवारा चाहने वालो को इस देश में न रहने देंगें।