कहानीलघुकथा
खो गया मेरा प्यार
अतीत की यादों का एहसास दर्शना को रोज़ इस हरे भरे पार्क में ले आता है। सूर्यांश जब साथ होता था, दोनों इस सफ़ेद बेंच पर बैठ फूलों को निहारा करते थे। बीच बीच में दर्शना झूले पर बैठ जाती। सूर्यांश झूला झुलाते बस निहारता रहता। कभी कुछ गुनगुनाने लगता। वह नौकरी के लिए लन्दन क्या गया कि अभी तक कोई खबर नहीं।
अब भी वही यादें दर्शना को पार्क के इस झूले पर ले आती हैं। कभी उसके प्यार की पैगें यहीं परवान चढ़ी थी। ये सुहाना समां बेंच पर बैठे हुए सूर्यांश की याद दिला देता है। और दर्शना का झूला झटके से रुक जाता है। सामने खाली पड़ी बेंच उसे मानो चिढा रही है। काश ! सूर्यांश साथ होता। तभी एक आभास हलचल का उसे खुशी से भर देता है। मानो कोई कह रहा हो, "मम्मा ! मैं आ रहा हूँ , आपका साथ देने। "
स्वरचित
सरला मेहता
इंदौर