कहानीलघुकथा
विषय:-मायके का संदेशा
शीर्षक:-*राखी का नेग*
सावन माह लगते ही प्रथा को माँ के अंतिम शब्द याद आ जाते,
" गुड़िया ! चाहे कुछ भी हो जाए राखी पर भैया भाभी से मिलने आना कभी मत भूलना।"
और प्रथा भी हर राखी पर ढेरों उपहार लिए मायके पहुँच ही जाती है।
भैया भाभी पूरी शिद्दत व मनुहार से प्रथा का स्वागत करते। भाभी उसके पसन्द के पकवान बनाने में पीछे नहीं रहती, " दीदी ! दहीबड़े बनाए हैं, माजी के हाथ का स्वाद शायद ही आए।"
भाभी के प्यार में माँ की ममता का एहसास पाकर प्रथा निहाल हो जाती। किन्तु एक गुत्थी वह सुलझा नहीं पाती। भैया आरती की थाली में सवा सौ रुपये का नेग रख देते। भाभी विदाई के समय साड़ियाँ व मिठाई थमा देती। भैया की अच्छी खासी आमदनी है। प्रथा कुछ समझ नहीं पाती। वह अपनी तरफ से ससुराल वालों के लिए उपहार खरीद कर पीहर की इज्जत रख लेती।
यही सोचते सोचते वह माँ के कमरे में पहुँच जाती है। वहीं रेक पर रखी पास बुक पलटने लगती है, " यह क्या ? मेरे नाम की पासबुक। भैया हर राखी पर उसके खाते में दस हज़ार जमा करवाते हैं। " उसकी सारी शिकायतें आँसुओं के रूप में बहने लगती हैं
स्वरचित
सरला मेहता
इंदौर