कविताअतुकांत कविताबाल कविताबाल कविता
गिल्लू मैं प्यारी गिलहरी
उछल -कूद करती हूँ
कभी जमीन पर तो
कभी पेड़ो पर रहती हूँ
जहाँ था मेरा आशियाना
वो पेड़ पर बना घोंसला प्यारा
काट दिया इंसानों ने
वो पेड़ और जंगल सारा
फिर भी मैंने न हार मानी
इंसानों के घर के अंदर
छोटी सी दुनिया बसा ली
बैठ कर खाती हूँ चुकुन्दर
मैं और मेरे नन्हें -नन्हें बच्चे
मिलकर बना परिवार निराला
खिड़की की ओट से अब
बना आशियाना मेरा सजीला
कभी चिलमचिल्ला होती वहाँ
तो कभी पसरा रहता सन्नटा
कितने ही लोग मेरी खिड़की के आगे
करते रहते सैर सपाटा