कविताअन्य
अपने से न कभी बातें करते ,
धूल को अपने मे समेटे रहते ।
सूखे पत्ते उसकी खिड़की से टकराते ,
कीड़े मकोड़े उसमे अपना घर बनाते ।
तिनका तिनका जमा करती यहाँ ,
चिड़िया बुनती अपना नीड़ वहाँ ।
दीवारें ताकती रहती दीवारों को ,
रोशनी भी न मिलती रोशनदानों को ।
एक तरफ मकड़ी बुनती अपना जाल ,
बन्द होते भी कितने जंतुओं को रहा पाल ।
लगता जैसे कोई सजा काट रहा है ,
अपने दुख को खुद से ही बाँट रहा है ।
बन्द होते छाई रहती गहरी खामोशी ,
दरवाजा किससे कहता अपनी बेबसी ।
जो दरवाजे हमेशा बन्द मिलते हैं ,
अक्सर वे खामोशी लिए गलते हैं ।
~सोभित ठाकरे