कविताअतुकांत कविता
*उमंग*
कोपलों सी अंकुरित होती हैं ये उमंगें
छोटे से दिल की छोटी सी चाह हैं
आसमानों को छूने की आशा है उमंग
यह नहीं तो कुछ भी नहीं है
जीते जी इक लाश सी चलती ज़िन्दगी
साँस लेती पर लड़खड़ाती बढ़ती
मत छोड़ो कभी इस लालसा को
लगे रहो तिनका तिनका चुनने में
गौरैया की तरह धुन के पक्के
राम सेतु सृजन में कंकर उठाती गिलहरी
जीवन जोड़ती यह वीणा के तारों सी
सरला मेहता