कविताअतुकांत कविता
कठपुतली
हम हैं ही कठपुतलियां
सबसे बड़े कलाकार की
इशारों पर नाचने वाली
किरदारों को निभानेवाली
इस संसार के मंच पर
क्यूँ न जी जान डाल दें
अपने अभिनय में
सबके अपने रोल हैं तय
ख़ुद का किरदार सुधारते
किसी और का ना बिगाड़े
कठपुतलियां सिखाती हैं
पालना विधि विधानों को
जो प्रकृति ने रचे हैं
अवमानना नियमों की
ला देती अर्श से फ़र्श पर
किन्तु,,,ध्यान रहे सदा
सुने अन्तर्मन की पुकार
स्वाभिमान बना रहे
क्यूँ किसी ग़लत इशारे पे
बेवज़ह नाचते रहे हम
नारी का अपना वजूद है
अस्मिता उसका जेवर है
हक़ उसे बात रखने का
डोर का बन्धन ना हो
डोर का एक सिरा
उसके भी हाथ में हो
सरला मेहता