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मुझे उड़ान भरने दो - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

मुझे उड़ान भरने दो

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मुझे उड़ान भरने दो

*माँ पापा, ना कतरो मेरे पंख
आप मेरे जीवनदाता हो
आपने ही मुझे सिखाया चलना
वक़्त आने पर बताया उड़ना
बिना पंखों के कैसे उड़ूंगी मैं ?
बताओ ना, माँ पापा
*अकेली हूँगी जब घर में मैं
कोई जाने पहचाने चाचू मामू आदि
प्यार के नाम से करेंगे छेड़खानी
सहलाएँगे मेरे कोमलांगों को
बिना पंखों के कैसे बचूँगी मैं ?
बताओ ना, माँ पापा
*स्कूल जाऊँगी जब मैं
कोई अंकल या सर किसी बहाने से
कोशिश करेंगे छूने की मुझे
बस, टॉयलेट या किसी कोने में
बिना पंखों के कैसे फड़फड़ाऊंगी मैं ?
बताओ ना, माँ पापा
*बड़ी होकर किसी प्रोजेक्ट के लिए
मिलूँगी किसी बॉस से
अपने काम की कीमत माँगेगे मुझसे
कुछ रातें बिताऊँ उनके साथ
कैसे बचा पाऊँगी अपनी इज्जत ?
बताओ ना, माँ पापा
*कभी अरमानों से मुझे ससुराल भेजा
और पल्ले पड़ गई दहेज के दरिंदों से
रोज के उलाहनें व तानें
ऊपर से पतिदेव की ताड़नाएँ
बिना पँखो के कैसे सह पाऊँगी ?
बताओ ना, माँ पापा
*गर पँख होंगे मेरे सही सलामत
पूरे जज़्बे से जीत लूँगी सारी जलालतें
भर लूँगी अपने सपनों की ऊँची उड़ान
आपकी उम्मीदों पर खरी उतरूँगी
मेरे पँखों को खूब मजबूत बनाना है
ऐसा करोगे ना, माँ पापा
सरला मेहता
इंदौर
स्वरचित

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