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क्या कुसूर है मेरा,,,
क्यूँ भूल जाते हैं हम, कई प्रतिभाओं को, उन बुलन्द हौंसलों को जो अपने सीमित साधनों से भी चमत्कार कर गुजरते हैं। हम भूल जाते हैं उन छोटी छोटी आशाओं को जो आसमानों को छूने के ख्वाब पूरे करती हैं।
बात है एक देहाती परिवेश से आई दीपिका कुमारी की। रांची झारखण्ड की बेटी ने मात्र दस रुपये से अपनी यात्रा प्रारंभ की थी। निचले पायदान से शुरुआत कर अपना नाम विश्व स्तर पर दर्ज किया। अनेक पुरस्कारों से नवाजी गई दीपिका का खेल है तीरंदाजी। इसी कला के दम पर पुरातन भारत ने कई परचम लहराए हैं।
क्रिकेट, फुटबॉल व अन्य मेराथन आदि ही नामी खेल हैं जिन पर हम नाज करते हैं। क्रिकेट के तो दिवाने हैं। रातें खराब करते, छुट्टियां लेते और महँगे टिकिट खरीदते हैं।
लेकिन हमारे अन्य भारतीय खेल हाकी, खो-खो, कबड्डी, तीरंदाजी आदि दोयम दर्जे के हो गए हैं।
हाल ही में पेरिस में हमारी दीपिका कुमारी ने तीरंदाजी में तीन स्वर्ण जीतकर अंतर्राष्ट्रीय धनुर्धर का खिताब हासिल किया है। वहाँ पचपन देशों ने शिरकत की है। किंतु सारे मीडिया माध्यम भी भूल गए।
क्या हमें भी याद नहीं रहा। हाँ, कुछ एक पोस्ट फेसबुक पर अवश्य नजर आई,,, यह दर्शाते कि दीपिका की उपलब्धि से किसी को कुछ लेना देना नहीं। क्या कुसूर किया है दीपिका ने???
सरला मेहता