कविताअतुकांत कविता
मौसम है सुहाना ,,,क्षणिकाएँ
लहराता आँचल
बहकती लहरें
अरमान दिल के
मचल रहे हैं
पी से मिलन को
तरस रहे हैं
सुहाना मौसम
सागर का किनारा
गुनगुनाती हैं ये फ़िज़ाएं
संगीत के सुर
लहरों ने छेड़े
मेरा थिरकने को
दिल चाहता है
लालिमा सूरज ने बिखेरी
लाल लहंगे के घूमर ने
शोर मचाया
साजन का संदेसा आया
घूँघट की ओट से साजन का
दीदार अधूरा ही पाया
सरला मेहता
इन्दौर
स्वरचित्