कहानीलघुकथा
*सत्यमेव जयते*
" अरे यार प्रबोध, तुम भी क्या दिन रात किताबों में घुसे रहते हो। चलो उठो, थोड़ा तफ़री पर चलते हैं। फ़िर साक्षात्कार में अभी समय है। " राजन अपने जिगरी दोस्त से बोला। प्रबोध ने किताबें समेटते जवाब दिया, " देख, ये जॉब मेरे घर के लिए बहुत ज़रूरी है। बहन का मेडिकल में प्रवेश हो गया है और पापा रिटायर हो गए हैं।"
प्रबोध की बदौलत ही राजन इंजीनियरिंग कर पाया। लेकिन उसको पता नहीं कि उसके डैडी सब सेटिंग कर चुके हैं। उसे पूरा विश्वास है कि जॉब प्रबोध को ही मिलेगी।
दोनों का साक्षात्कार होता है। प्रबोध आत्मविश्वास से सब उत्तर देता है। राजन से कुछ खास पूछा ही नहीं जाता।
राजन को अभी अभी नियुक्तिपत्र मिला है। प्रबोध का नाम चयन सूची में ही नहीं है। वह सीधा प्रबोध के पास पहुँचता है, " चलो मेरे साथ अपनी फ़ाइल लेकर।" और वह पहुँच जाता है मैनेजर के ऑफिस में, " सर माफ़ करें, नौकरी का असली हक़दार मेरा दोस्त है। मुझे डैडी के कारण यह जॉब मिला है। " कहते हुए नियुक्ति पत्र पटक जाते जाते सत्यमेव जयते की तख़्ती को सीधा कर देता है।
सरला मेहता