कविताअतुकांत कविता
*छपाक छप छप*
अल्हड़ सा बचपन
मुश्किलों से अनजान
बेख़ौफ़ व बेमिसाल
क्या हुआ, क्या होगा
नहीं है ये परेशान
*साथ संगी साथियों के
बहुत था इन्हें अरमान
बारिश का मौसम हो
नन्नू टिन्नी मुन्नू चुन्नू हो
और मस्ती में खूब नहाए
*आओ खेलें कोई खेल
बॉल रिंग या धप्पा मार
बुलालो सबको दोस्तों
छुट्टी का दिन है आज
करें छपाक छप छप
*रिमझिम बूंदे देखो
आज खूब बरस रही
पसीने से थे तरबतर
आओ जी भर नहालें
माँ पापा ने दी है छूट
*अब आएगा मजा
गरम पकौड़े खाने का
पौष्टिक सूप पीने का
पानी बाबा आया है
ककड़ी भुट्टा भी लाएगा
सरला मेहता
इंदौर
स्वरचित