कविताअतुकांत कविता
कलाम को सलाम
बचपन को अपने खोकर
घर घर बेंचे थे अखबार
मेहनत के दम पर अपनी
किए थे सपने सब साकार
पढ़ने लिखने से उन्हें
नहीं था इतना सरोकार
अंतरिक्ष में भरनी थी
उनको ऊँची सी उड़ान
मृत्यु दिवस पर छुट्टी से
वो करते थे सदा इंकार
स्कूल कार्यालय रहे
हर दिन यूँ ही गुलज़ार
उनके लिए तो था बस
करना आराम हराम
ऐसे ही थे वे कर्मवीर
ए पी जे अब्दुल कलाम
बच्चे से बूढ़े तक उनको
दिल से करते प्रणाम
अपने दम पर ही पाया
राष्ट्रपति जी का नाम
न नेता न संत्री मंत्री पद
वो थे इक आम इंसान
सपनों की दुनिया बच्चों
सच करके सदा दिखाओ
सरला मेहता
इंदौर
मौलिक