कविताअतुकांत कविता
ताजमहल
विश्व के सात अजूबों में एक
प्यार की रूहानी इबारत है
प्रेम की परिभाषा है यह
यमुना किनारे मुमताज़ की याद में
बनाया था शाहजहाँ ने
अद्भुत प्रेम की निशानी ये
करोड़ो की लागत लगी थी
बाइस वर्षों की अवधि में
कहते कारीगरों ने हाथों की बलि दी
नहीं उन्हें भरपूर दे भेज दिया बहुत दूर
कि बन ना सके दूसरा ताजमहल
क्यों न घर को ही बनालें
ताजमहल
अपने हुलसते सपनों का
महल
तोड़ लाएँ तारे आकाश से
सजादे महबूबा की माँग में
भरदें उसका दामन तमाम खुशियों से
क्यूँ करें वक़्त बरबाद
जुटाने में हीरे कीमती पत्थर
सजाने को एक नायाब ताजमहल
इस जन्म में ही जी लें एक दूजे के लिए
क्यूँ तलाशते फिरे यहाँ वहाँ
जो बसता है मेरे मन मंदिर में
सरला मेहता