कविताअतुकांत कविता
प्रेम
उन नितांत अकेले पलों में
जब मैं होती हूँ अकेली
करती हूँ तुमसे बेइंतहा प्रेम
तुम्हारी देह से नहीं
तुम्हारी रूह से
क्योंकि तुम्हारा इश्क़
मेरी नस नस में
हलचल पैदा कर देता है
तुम्हें महसूस करना
फिर दिल का जोरों से धड़कना
करा जाता है
तुम्हारे होने का अहसास
महसूस होता है जैसे
तुम सहला रहे हो मुझे
बंद पलकों से महसूस करती हूँ
जरा सी पलक उघड़ी
और तुम नहीं होते हो
होता है तो सिर्फ प्रेम
आत्मिक प्रेम में डूबी
गर्म सांसों के टकराव का
अहसास सुखद लगता है
मुसलधार बारिश की तरह
लगा देते हो तुम
चुंबन की झड़ी
और निहाल हो जाती हूँ मैं
बस तुम बसे रहना
मेरी रूह में
एमके कागदाना
फतेहाबाद हरियाणा