कविताअतुकांत कविता
विषय:--अनपढ़
विधा:---क्षणिकाएँ
पीठ पेट दोनों एक लिए
कुलबुलाते मून्नु को
मालकिन की दुत्कार से
पुचकारते आगे बढ़ी
किसी और दर पर
बर्तन माँजती बरौनी ने
थमा दिया अपना नाश्ता
व गरम चाय का ग्लास
मिसेस शर्मा बोली पति से
पिकनिक के मजे लेते हैं
दो वोटों से क्या फ़र्क होगा
सजी सँवरी महरी आई
मेडम आज मैं छुट्टी पर
मुझे वोट देने जाना है
अनपढ़ माँ निभाती रही
सारे पारिवारिक रिश्ते
बाँधे रखा स्नेह की डोर से
सब ननद देवरों को
पढ़ी लिखी बहु ने आकर
बिखेर दिए तिनके सारे
कुछ ही पलों में
सरला मेहता
इंदौर म प्र
स्वरचित