कविताअतुकांत कविता
विषय:--कन्यादान
शीर्षक:-'मैं सामान नहीं'
*मैं कन्या हूँ, दान नहीं
एक जीती जागती
चलती फिरती
सजीव इंसान हूँ मैं
*दान में दी जाती हैं
वस्तुएँ व सामग्रियाँ
और कई चीज़े तो
अटाले में बेच दी जाती
*मेरा भी छोटा सा दिल है
कई आशाओं से भरा
मेरी अपनी इच्छाएँ हैं
आसमानों को छूने की
*मैं बछड़ी नहीं गाय की
कि खेलने की उम्र में
खूंटे से बाँध दी जाऊँ
मैं माँ की जाई बेटी हूँ
*कर्तव्यों की पोटली लिए
अनजाने पल्लू से बंधी
नहीं विदा होना मुझे
अधिकार भी चाहूँगी मैं
*जन्म से ही पराया माना
किसी की अमानत माना
मुझे अपना घर चाहिए
जहाँ रहूँ मैं महारानी सी
*बाबा,मेरा दान ना करना
ये विवाह की पावन वेदी है
कहीं बलि की वेदी ना बन जाए
मुझे मेरे घर विदा करना
सरला मेहता