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चिट्ठी आई है - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

चिट्ठी आई है

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चिट्ठी आई है

"अरे भागवान, कहा हो ? ये देखो, अपने गौरव मुन्ना की चिट्ठी आई है। "
पति रामनाथ की बात सुन राजरानी कहती है, "मुन्ना के बापू, ये लो चाय पियो। फ़िर आराम से चिट्ठी सुनाना। पर सुनो जी, ये अपना मुन्ना रोज़ फ़ोन पे बात क्यों नहीं करता ? वो रामी काका के बहु बेटे बात करने के साथ अपनी सूरत भी दिखा देते हैं। "
बेचारे रामनाथ जी सोचने लगे कि बात तो सही है। वे अभी तक नहीं समझ पाए कि बेटे की क्या मजबूरी है। वे पत्नी को समझाते हैं, "ये चिट्ठी आती है न तो पूरे गाँव को पता चल जाता है कि बेटा हमारा कितना ध्यान रखता है। "
बेचारी राजरानी भी खुश हो जाती है, " हाँ, ये भी अच्छा है कि जब बच्चों की याद आए झट से चिट्ठी पढ़ लो। अरे, इस बार फोटो भी भेजी है। सब मढ़वा के टाँग देंगे और जब याद आए देख लिया करेंगे।"
माँ बापू क्या जाने कि बहु नहीं चाहती कि गौरव रोज़ घन्टे भर तक बात करे। लाड़ले बेटे ने पत्नी की झिक झिक से बचने के लिए चिट्ठी का सिलसिला शुरू किया।
सरला मेहता

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दादी की परी
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