लेखआलेख
नशामुक्ति,,,एक प्रयास
सबसे घातक सामाजिक बुराइयों में से एक है नशे की आदत। शराब गाँजा चरस आदि नशीले पदार्थ एक खुशहाल परिवार को बर्बाद कर देते हैं। कहते हैं पहले इंसान शराब पीता है,,,फ़िर शराब उसे ही पीने लगती है।
नशाबंदी हेतु कई प्रयास होते रहे हैं। कई सरकारों ने नियम बनाए, प्रतिबंध लगाए। किन्तु इस प्रतिबद्धता को जारी रखना नामुमकिन साबित हुआ। कारण,,, यह सरकारी आय का एक प्रमुख साधन है। काश, शासन यह सोच पाता कि समाज के लिए नशा एक नासूर बन चुका है। शीघ्र ही यह कैंसर का रूप ले लेगा।
हमारे सनातनी भारतीय परिवार इससे अछूते थे। हमारे संस्कार चीन की दीवार बन डटे थे। किंतु पाश्चात्य संस्कृति ने इसमें सेंध लगा दी। और यह चलन एक फैशन बन गया।
अब इस महादानव से छुटकारा पाने के लिए हमें ही प्रयास करने होंगे।
सरकार तो पल्लू झाड़ चुकी है। सम्भव है भविष्य में हम उसे जगा सके। हमारी महिलाएँ कभी हारती नहीं। बुराई से लड़ने का जज़्बा वे रखती हैं। गुलाबी गैंग जैसे कई समूह बने। कुछ हद तक सफ़ल भी हुए। किन्तु फ़िर वही ढाक के तीन पाँत।
नशा, उच्च वर्ग की निशानी ही बन गया है। आधुनिक यौवनाएँ भी इसे प्रगति का पर्याय मान बैठी हैं। यहाँ कोई कोशिश कारगर नहीं हो सकती। बस हमारे संस्कार ही इसे धता बता सकते हैं। बच्चा घर में जो देखता है, उसे परंपरा मान उसका अनुसरण करता है। माता पिता का आचरण ही तो उसके लिए उदाहरण है। नतीज़ा कई परिवारों में बेटे अपने पिता के साथ चीयर अप करते हैं।
आज के सोशल मीडिया भी यह लत परोसने में पीछे नहीं हैं। एक ओर बताते हैं "नशा स्वास्थ्य के लिए घातक है"। तो दूसरी ओर हमारे हीरोज़ ग्लास थामे विज्ञापन से पैसे कमाते हैं। टी वी मीडिया सबसे सशक्त साधन है। ये चाहे तो बच्चन जी को शराबी की बजाय एक निर्व्यसनी व्यक्ति के रूप में भी पेश कर सकते हैं।
आजकल कई रिहेब सेंटर्स इस दिशा में काम कर रहे हैं। यहाँ नशाग्रस्त व्यक्ति को कुछ समय के लिए रखा जाता है। दवाई व्यायाम प्राणायाम के माध्यम से सामान्य जीवन के लिए तैयार किया जाता है।
पारिवारिक वातावरण इस आदत से मुक्ति दिलाने में सहायक होता है। कुछ पीड़ित इससे लाभान्वित होते हैं। किंतु पक्के खिलाड़ियों के लिए तो,,,,,कुत्ते की पूँछ टेढ़ी की टेढ़ी ही है। वे पुनः उसी ट्रेक पर आ जाते हैं।
इस दिशा में पारिवारिक सदस्य ही मुक्ति दिला सकते हैं। सख़्ती से नहीं वरन प्यार से ही यह हो सकता है। धीरे धीरे ही मना धीरे ही सब होय,,,।
सरकार ही सख़्त कदम उठाकर इस व्यसन से मुक्ति दिला सकती है।
पूर्ण प्रतिबंधन ही इस बुराई पर अंकुश लगा सकता है।
नशीली चीजों से आय न होने पर सरकार कँगली नहीं हो जाएगी। आमदनी के जरिए और भी हैं।
सरला मेहता
इंदौर