कविताअतुकांत कविता
सहेजे बूंदों को,,,
घुमड़ घुमड़ कर बादल आए
बूंदों की सौगात हैं लाए
सूखी धरती को हर्षाए
चहूँ ओर हरियाली छाए
*ताल तलैयाट झरने झूमे
नदियाँ हैं मल्हार सुनाए
तरु पल्लव देखो इतराए
पंछी सारे शोर मचाए
*जीवन की अमोल धरोवर
ये अमृत बूंदें आओ सहेजे
अंजुरी में भर करें संकल्प
संरक्षण संवर्द्धन का हम
*व्यर्थ ना बहाए इसको
प्रदूषण से भी बचाए हम
निर्बाध इसे यूँ बहने दें
जीवों को पोषित होने दें
*आव्वाहन बरखा का करें
वृक्षमित्र बन करके हम
जल है तो ही जीवन है
यही तो सबसे श्रेष्ठ धन है
सरला मेहता
इंदौर
स्वरचित्