कविताअतुकांत कविता
*क्षणिकाएँ*
ऋतु बारिश की है न्यारी
ग्रीष्मा की है हुई विदाई
चहुँ ओर हरियाली छाई
तरु पल्लव भी झूम रहे
मौज में पंछी चहक रहे
हलधर की आशाएँ पूरी
गोरी संग खेतों को जाए
काश! ऐसी बरखा आए
विकारो का रहे ना नाम
रोग विषाणु भी बह जाए
सब अच्छा व सब अच्छे
खुशहाली चहुँ ओर छाए
प्रकृति गाए व मुस्काए
धरा पर स्वर्ग उतर आए
पानी बाबा आया रे
ककड़ी भुट्टा लाया रे
छोड़ छतरियाँ बच्चे देखो
कागज़ की कश्तियाँ लाए
पीपल पर झूले हैं डाले
राखी का त्यौहार आए
सरला मेहता
इंदौर
स्वरचित