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खेल - सोभित ठाकरे (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविताहाइकु

खेल

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  • 1 Min Read

चलो खेल खत्म हुआ
हाँ जी खेल
दोस्ती का
इश्क का
उम्मीदों का
बहानों का
ज़िन्दगी का .....
अबकुछ शेष नही
जो कुछ शेष है वह स्मृतियां मात्र है
जिसमे कोई आज भी टूट रहा है
घुट रहा है ..!!

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