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उम्मीद की किरण - रूचिका राय सिवान91 बिहार (Sahitya Arpan)

अतुकांत कविता

उम्मीद की किरण

  • 260
  • 5 Min Read

जब भी जीवन में अँधेरा गहराने लगा,
बहुप्रतीक्षित उजाले की तलाश में,
दिल प्रतिदिन टूटकर बिखराने लगा,
तभी अनायास किसी कोने से छोटी सी
उम्मीद की किरण
जीवन के लिए काफी हो गयी।
तमाम निराशाओं पर वो भारी पड़ गयी।
फिर जल्दी ही रोशनी जीवन में नजर आने लगा।
उम्मीदें न जाने कब जीवन का आधार बन गयी,
जीवन उसके बिना बेरौनक और वीरान बन गयी,
हर तरफ निराशा गहराने लगी
जिंदगी के प्रति बेरुखी मन में छाने लगी,
तभी मन के किसी कोने से एक हल्की सी
उम्मीद की किरण,
जीवन के प्रति एक नजरिया दिखाने लगी।
उम्मीद की शायद कल सब कुछ बेहतर हो,
आज से भी बेहतर।
उम्मीद कल जीवन के पन्नों पर ढेरों ख़ुशियाँ लिखी हो,
कल से भी ज्यादा।
ये उम्मीदें बड़ी बलवान होती हैं
हौसलों की उड़ान होती हैं
हिम्मतों की खान होती हैं।
इसलिए मन के कोने से जलती उम्मीद की किरणों को
सदैव अपना बनाये रख
सदैव जिंदा रख
लाखों तूफानों में भी उसे अपने से मिटने न दें
क्योंकि बहुप्रतीक्षित उजाले की तलाश
घने अंधकार बीच
बस यही पूरा करती हैं।

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