कविताअतुकांत कविता
उम्मीद की लौ
जब सब कुछ खत्म होने के कगार पर हो,
अँधेरा गहरा छाने लगे चारों तरफ,
दुखों का चौतरफा मार हताश और निराश करें,
तभी मन के किसी कोने में जलती एक लौ
छोटी सी उम्मीद की।
कि शायद कल एक नई शुरुआत हो,
कि कल रोशनी होंगी हमारे आस पास,
कि कल खुशियों के फूल मन को सुरभित करेंगे,
बस इसलिए उम्मीद की लौ जलाते रहना।
दुरूह रास्ते लगे जब जीवन के,
अपने भी साथ न दे सके जब आपके,
जब दुनियावी चेहरे अजनबी से लगने लगे,
तब मन के किसी कोने से मचलती उम्मीदें।
कि शायद कल मंजिल हमारे पास हो,
कि कल शायद बेगाने भी अपनेपन के साथ हो,
कि दुनियावी भीड़ में भी कुछ अपने हैं।
बस इसलिए मचलते उम्मीदों को हौसला देना।
ये उम्मीदें ही जीवन का आधार हैं।
ये उम्मीदें ही रेगिस्तान में प्यास बुझाने का प्रयास हैं।
ये उम्मीदें ही शीतल ठंड में तपन का एहसास है।
ये उम्मीदें ही तपती धूप में छाया का एहसास है।
बस इसलिए उम्मीद हमेशा जिंदा रखना।