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शिवा और उसका जादुई जाम्ब नगर - Radha Shree Sharma (Sahitya Arpan)

कहानीउपन्यासबाल कहानी

शिवा और उसका जादुई जाम्ब नगर

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🌹शिवा का पूर्व जन्म - 1 🌹

प्रिय पाठकों, ये कहानी और इसके पात्र, स्थान, और घटनायें आदि पूर्णतया काल्पनिक हैं। उनका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति आदि से कोई संबंध नहीं है। ये कहानी पूरी तरह से हमारे विचारों और कल्पनाओं का प्रतिबिंब है। यदि इसकी किसी से भी कुछ समानता मिलती है तो वो मात्र एक संयोग है।
ये कहानी हम कल्पना प्रतियोगिता के लिए लिख रहे हैं। जिसका उद्देश्य हमारी कल्पनाओं की उड़ान मात्र है। इसका आप सब पाठक भरपूर आनंद लीजिए।
तो आरम्भ करते हैं कहानी "शिवा और जादुई नगर जाम्ब" के अंतर्गत शिवा का पूर्व जन्म....




शिवा एक क्षत्रिय सेनापति की दस संतानों में सबसे छोटा पुत्र था। किन्तु अत्यंत ही कुशाग्र बुद्धि, तीव्र स्मरण शक्ति और दृढ़ संकल्प वाला था। वो जिस विषय को एक बार पढ लेता था उसे कभी नहीं भूलता था। उसका मन और बालकों के साथ खेलने का नहीं करता था बल्कि उसे केवल वेद और पुराणों में ही अपना भविष्य दिखाई देता था। उसने कई पुराण पढ़े, जिससे बालक शिवा का मन सृष्टि के आरम्भ में उत्पन्न हुई मानस सृष्टि में अटक कर रह गया। उसने जब ये सुना कि "परम पितामह ब्रह्मा जी ने अपने मन से सृष्टि उत्पन्न की और दक्ष प्रजापति ने भी अपने मन से दस हजार पुत्र उत्पन्न किए और उनको आदेश दिया कि सृष्टि को आगे बढ़ाओ।" इन सब बातों ने बालक शिवा के मन पर बहुत असर डाला। अब वो ये सब जानने के लिए उत्सुक हो गया कि मानस सृष्टि का निर्माण कैसे किया जाता है।


उसकी यही जिज्ञासा उसे अपने वेदों के निकट ले आई। उसने अपने वेदों का अध्ययन, और मनन करना आरम्भ कर दिया। जिससे उसे कई प्रकार की विद्याएं प्राप्त होने लगी, और वो उन विद्याओं का प्रयोग कर के देखने लगा। लेकिन कहते हैं कि बिना गुरु के सही विद्या प्राप्त नहीं होती अर्थात किसी भी विद्या की गूढ़ता को समझने के लिए गुरु की आवश्यकता होती है।


वो एक ऐसे गुरु की तलाश में जाना चाहता था, जो उसे इन वेदों में छुपी वास्तविक विद्या को समझा सकें। किन्तु उसके माता पिता उसे इस प्रकार कहीं भेजने के लिए तैयार नहीं थे। तो उसने अपने माता पिता को मनाने के लिए अपने गुरु जी का सहारा लिया। गुरु जी बहुत प्रकार से उसके माता पिता को समझाया कि इसका लक्ष्य बहुत विशाल है और तुम दोनों अपने मोह के कारण इसके लक्ष्य में बाधा मत बनो। गुरु का आशीर्वाद और अपने माता पिता से आज्ञा लेकर शिवा गुरु की तलाश में निकल गया। कहते हैं, जब हम कुछ पाने के लिए अथक परिश्रम करने लगते हैं, तो नियति भी आपके लिए रास्ते खोलने शुरू कर देती है। शिवा भी उसी राह पर चल निकला था और उस समय भी उसका अध्ययन, मनन और प्रयोग चालू ही थे। कुछ ही दिन के परिश्रम से उसे उसका लक्ष्य प्राप्त हो गया।

एक दिन दोपहर के समय वो भोजन करने के उपरांत कुछ बनाने का प्रयास कर रहा था, लेकिन बार बार प्रयास करने पर भी वो सफल नहीं हो रहा था। एक महानुभाव बारह वर्ष के बालक को इस प्रकार लगन से कुछ बनाने का प्रयास करते देख हैरान भी थे और प्रसन्न भी। वो बहुत गौर से उसके यंत्र बनाने के तरीके को देख रहे थे। जब उन्हें उस बालक में कुछ पाने की तीव्र ललक दिखी तो उन्होंने उसकी विनम्रता, धैर्य और जिज्ञासा की परीक्षा लेने की सोची। उन्होंने पहले तो उसका यंत्र तैयार करने का हर प्रयास विफल किया, जबकि उसके द्वारा प्रयोग की जाने वाली विधि बिल्कुल सही थी। जब उनसे दस बार अपने प्रयास के फेल होने पर भी धैर्य से अपने से होने वाली गलती पर विचार करने लगा और और मन ही मन माँ सरस्वती से प्रार्थना करने लगा कि उसकी जो भी गलती हो उसमें उसे सुधार करने के लिए शुद्ध और उत्तम बुद्धि प्राप्त हो, तो वे महानुभाव अत्यंत प्रसन्न हुए। वो उनकी लगन और धैर्य की परीक्षा में शत प्रतिशत उत्तीर्ण हुआ था।

वो महानुभाव बालक शिवा के धैर्य, लगन और शुद्ध आत्मिक प्रकाश से अत्यंत प्रभावित हुए और उसके समीप जाकर उसे कहने लगे - बालक, क्या मैं तुम्हारी कुछ सहायता कर सकता हूँ?

शिवा ने उनकी ओर बड़े ध्यान से देखा और हाथ जोड कर खडा हो गया। उसने सिर झुका कर उन्हें प्रणाम किया - प्रणाम मान्यवर 🙏🏻🌹🙏🏻

अजनबी महानुभाव ने उसे आशीर्वाद दिया - यशस्वी हो, कीर्तिमान हो, तुम्हारे सारे ध्येय पूर्ण हों। ✋

शिवा ने हाथ जोड़ कर अत्यंत ही विनीत भाव से कहा - जी मान्यवर, मैं ये शीघ्रता से दूरी तय करने वाला यंत्र बनाने की चेष्टा कर रहा हूँ। किन्तु पता नहीं क्यों हर बार मैं कुछ न कुछ गलती कर ही जाता हूँ। यदि आप मुझे ये सिखा देंगे कि किस प्रकार से इसे सफलतापूर्वक तैयार किया जाए, तो आपकी महान अनुकंपा होगी।

वे अजनबी महानुभाव उसकी विनम्रता से भी बहुत प्रभावित हुए। और उसके यंत्र में होने वाली अशुद्धि को दूर कर उसका यंत्र तैयार कर दिया। यंत्र के सफलतापूर्वक तैयार होते ही शिवा ने उनके पैर पकड़ लिए और उनकी चरण वंदना करके उनसे कहने लगा - मैं जान गया हूँ कि आप कोई साधारण मानव नहीं हैं। आप वही हैं जिनकी मुझे तलाश है। कृपया अपना परिचय देकर मुझे अपना शिष्य स्वीकार कीजिए और मुझे उत्तम शिक्षा देकर मेरा मार्ग प्रशस्त कीजिए। 🙏🏻🌹🙏🏻

अजनबी महानुभाव ने अपना परिचय देते हुए कहा - वत्स शिवा, तुम सही हो। मैं ब्रह्मर्षि विश्वामित्र हूँ और मैं सहर्ष तुम्हें अपना शिष्य स्वीकार करता हूँ। अब चलो...

अब तक ऋषि विश्वामित्र अपने वास्तविक स्वरुप में आ चुके थे। शिवा प्रसन्नतापूर्वक उनके साथ चला गया। महर्षि विश्वामित्र उसे लेकर अपने गुप्त आश्रम पर आए। और उसे विद्या देनी आरम्भ की। पहले उसके तन और मन की शुद्धि करायी उसके बाद उन्होंने उसे माँ सरस्वती वंदना सिखाई और उसे भी पीछे पीछे उच्चारण करने के लिए कहा -

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥1॥


शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्यां जगद्व्यापिनीम्।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌॥
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम्‌।
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌॥2॥K

उसे धीरे-धीरे ध्यान एवं योग की विधि सिखाई और साथ ही साथ वेदों का अध्ययन और उन्हें स्मरण रखने की उचित विधि भी बताई।


लगभग तीन वर्ष में शिवा महर्षि विश्वामित्र से उनकी लगभग सभी विद्याएं सीख गया। जिनमें कुन्डली जागृत करना व सम्पूर्ण ध्यान योग विधि, समाधि (जिसमें सूक्ष्म शरीर से कहीं भी आ जा सकते हैं), अणिमा आदि आठों सिद्धि, शस्त्र और अस्त्रों का सम्पूर्ण ज्ञान, सभी वेदों का पूर्ण अध्ययन और उनमें लिखे मंत्रों का सही तरह से उपयोग और प्रयोग विधि, नए यंत्र व शस्त्र बनाने की विधियां आदि।



ये सब सीखने के बाद शिवा हाथ जोड़ कर अति विनीत वचन कहते हुए अपने गुरु के समक्ष नतमस्तक हुआ - गुरुदेव, मुझे जादुई और मायावी विद्या और सीखनी है।



गुरु विश्वामित्र जी बोले - वत्स, उसके लिए तो तुम्हें ब्रह्म देव की आराधना करनी होगी। तुम तमसा नदी के किनारे पर महर्षि वाल्मीकि आश्रम के निकट जाकर तपस्या करो। वो स्थान इस प्रकार की तपस्या के लिए सर्वोत्तम है। वहीं तुम्हें ब्रह्मदेव के दर्शन होंगे।

शिवा हाथ जोड़ कर और सिर झुका कर बोला - जो आज्ञा गुरुदेव।



शिवा अपने गुरु महर्षि विश्वामित्र की चरण वंदना करके तमसा नदी के तट पर आसन जमा कर बैठ गया। पहले दो महीने उसने बैठ कर और कुछ भोजन करके तपस्या की उसके बाद वो खडा हो गया और फलाहार के साथ तपस्या करने लगा उसके बाद धीरे-धीरे फलाहार का त्याग करके केवल जल और वायु पीकर ही तपस्या की और अब केवल एक पैर पर खड़े होकर उसने जल का भी त्याग कर दिया और केवल वायु पीकर ही तपस्या करने लगा।



उसकी इतनी कठोर तपस्या देख कर सभी देवता ब्रह्मा जी के पास गए और उनसे शिवा का अभीष्ट वर देने के लिए प्रार्थना करने लगे। ब्रह्मा जी देवताओं की प्रार्थना पर शिवा के समक्ष प्रकट हुए और उसे वरदान मांगने के लिए कहा। शिवा ने हर प्रकार की जादुई विद्या, मायावी विद्या और ऐसा नगर माँगा जो स्वयं भी जादुई शक्तियाँ रखता हो और जिसमें भूख, प्यास, गर्मी, सर्दी आदि पृथ्वी जनित व्याधियों की मार ना झेलनी पड़े। और उसके साथ ही साथ मानसिक संतान उत्पन्न करने की विद्या भी सिखाने के लिए कहा।



ब्रह्मा जी एक सोलह सत्रह वर्ष के बालक का हर प्रकार की विद्या प्राप्त करने के लिए इतना उत्साहित देख कर मुस्कुराते हुए बोले - तथास्तु 🤚🏻

और उसकी प्रज्ञा जागृत करके एक एक विद्या उसे सिखाने लगे। जब शिवा उन सब विद्याओं में पारंगत हो गया तो ब्रह्माजी के कहने पर उसने एक ये वरदान और माँगा कि उसकी बुद्धि सदैव धर्ममय रहे, वो किसी भी जन्म में आपसे और गुरु विश्वामित्र से प्राप्त हुई विद्या को ना भूले और ठाकुर जी के श्री चरणों से वो कभी विचलित ना हो। ब्रह्मा जी ने मुस्कुराते हुए उसका अभीष्ट वरदान उसे दिया और उसे वो स्थान भी बताया जहाँ वो अपना इस तरह का नगर बसा सकता था।



🌹 क्रमशः......

आज के लिए इतना ही... मिलते हैं कल अगले भाग के साथ, जो थोडा लंबा होगा। आशा करते हैं कि आपको शिवा का पूर्व जन्म पसन्द आएगा। अब आज्ञा दीजिए......
राधे राधे 🌹 🙏🏻 🌹

🌹 ©️ राधा श्री शर्मा 🌹

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दादी की परी
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