कहानीलघुकथा
*फंड का फ़ायदा*
एक लम्बे अरसे बाद स्कूल खुले। प्राचार्या ने शिक्षकों से मशविरा किया," वार्षिकोत्सव फंड से क्यों न हम बच्चों के लिए रोचक कार्यक्रम रखे। गरीब कलाकारों को अपना हुनर दिखाने का अवसर दें। इस बन्द में सबकी हालत खस्ता हो गई है। "
आज बड़े से पांडाल में सब कलाकार तैयार हैं। बच्चे बड़े उत्सुक हैं।आसपास के कुछ लोग भी मौका कैसे चूकते।
एक के बाद एक ग्रुप आ रहे हैं। कठपुतली खेल, जादू के करिश्में कालबेलिया नृत्य आदि देख बच्चों की खुशी का पारावार नहीं।
अंत में एक बच्चा एक स्टूल पटिए व कुछ बोतलें लेकर आता है। तभी एक बारह तेरह वर्ष की बच्ची अपना चेहरा छुपाती आकर नमस्ते करती है। वह तेजी से सधे कदमों से स्टूल पर खड़ी होती है। बच्चा चार बोतलें रख उस पर पटिया रखता है। लड़की सन्तुलन बनाते है उस पर खड़ी हो अपने हाथ हवा में लहराती है। बच्चा पुनः बोतलें व पटिया रखता है। वह लड़की दूसरे पटिए पर शरीर पीछे की ओर मोड़ हाथों से पैरों को छूती है। तभी उसका चेहरा साफ़ दिखाई देता है।
सामने बैठे बच्चे चिल्लाते हैं, " ये तो हमारी खेल मॉनिटर सलमा दीदी हैं।"
प्राचार्या जी दौड़कर सलमा को नीचे उतार पूछती है, " ये क्या है ? क्यों इतना खतरा मोल ले रही हो ? "
सलमा रोते हुए बताती है, "अब्बू अम्मी दोनों बीमार है। दीदी की शादी होने के बाद अब्बू से मैंने सीख लिया। घर को थोड़ा सहारा हो जाएगा।"
प्राचार्या जी घोषणा करती है, " सलमा की पूरी पढ़ाई आदि का खर्च स्कूल उठाएगा। हम सब अपनी एक एक सप्ताह की पगार से इनके अब्बू के लिए एक किराना दुकान खुलवाएंगे।"
पांडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजने लगा।
सरला मेहता
इंदौर