कहानीलघुकथा
ऐसा कौन आ रहा है ?
मिश्रा जी चाय की चुस्कियों के साथ सोच रहे हैं, " अब सब तैयारियां हो गई है,,भीतर
बाहर पूरा घर गुब्बारों व फूलों
से सज गया है।"तभी पत्नी जी ने एक और जुमला थोप दिया," अरे सुनो,सामने वाले दरवाजे पर वंदनवार लगवा दिया है ना। और हाँ वह स्वागत की तख्ती भी लटका देना। ढोलक वाले को भी जरा एक बार और याद दिला देना। खैर, मेहमान तो अपने हिसाब से आते रहेंगे।"उधर नन्हीं कोपल अपना कमरा सजाने में वयस्त,आज मानो गुलाबी रंग की बहार आई है।
मम्मा पापा तीन साल के लिए दुबई में पोस्टेड हैं। तभी दादी का फरमान सुनाई दिया,"अरे बाबा दादा पोती तैयार हुए कि नहीं?"
आस पड़ोस के लोग भी चर्चा में लगे हैं ,"ये मिश्राइन जी भी ना ,सचमुच सठिया गई है। अरे बेटे बहु आ रहे हैं,कोई नई दुल्हन तो नहीं। पो फटते ही पूरा मोहल्ला सर पर उठा रखा है। चलो चलो,जल्दी से सब तैयार हो जाओ।"मिसेस मिश्रा भी थककर आरती की थाल लिए बरामदे में बैठ गई।
तभी पोती ने दूध का ग्लास थमाते हुए आदेश दिया,"लो पहले दवाई खाओ।आज फिर भूल गई ना दादी।"
कार का हॉर्न सुन कोपल दौड़ी गेट की तरफ।
और ढोलक की थाप पर सहेलियों के साथ नाचने लगी। दादा ने गीत बजा दिया
,,,बहारों फूल बरसाओ,,," और सचमुच बरसा दी रंग बिरंगे फूलों की पंखुरियां।कोपल ख़ुशी से ताली बजा चिल्ला पड़ी," मेरी छोटी बहना पंखुरी आगयी है।"सभी हतप्रभ,हैरान।और दादी गोद में अपनी गुलाबी गुड़िया को ले बलैया लेने लगी।दादा दूर खड़े अपनी बारी का इंतजार करने लगे।
इधर लोगों की खुसुर पुसुर शुरू,"अफ़सोस दिल गड्ढे में,
खोदा पहाड़ निकली चुहिया।"
सरला मेहता
इंदौर
मैलिक