कविताअतुकांत कविता
माँ ...जो मैंने तुम्हें कभी न बताया
मेरी खुशबू में बसी तेरी पहचान,
तू मेरा आत्मविश्वास,मेरा सम्मान,
उठा है सर हमेशा तेरे गुरूर से,
पाला है तूने कुछ ऐसे जुनून से,
परछाई की तरह चली है तू हमेशा,
हाँ,तू मेरा अक्स,मेरी परछाई है,
तेरे जन्म से जुड़ा मेरा जन्म है,
तू मेरा अस्तित्व मेरा स्वाभिमान है |
माँ... जो मैंने तुम्हें कभी न बताया,
कि तुम्हारे जन्मदिन पर,
अपने जन्म का भी मैंने उत्सव मनाया |
आसान नही थी ये डगर,
पर होकर तुमने निडर,
अगर मगर को दरकिनार कर,
किया जो तय ये अदभुद सफर|
संग तुम्हारे दृश्यम हुए नए आयाम,
की सपनो पर लग न पाया कभी विराम,
माँ... जो मैंने तुम्हें कभी न बताया,
कि तुम्हारे जन्मदिन पर,
अपने जन्म का भी मैंने उत्सव मनाया |
✍️श्वेता निम्बार्क
मौलिक, स्वरचित