कहानीलघुकथा
" फूल गुलाब का "
" रजनी , घड़ी देखो बिटिया आज पाँच मिनिट ऊपर हो रहे हैं।" रजनी बेफ़िक्री से बोली, "पापा, आज सर ने मुझे ख़ुद छुट्टी दी है कि आपका बर्थडे मनाऊँ।"
पापा व्यास जी सोचने लगे ,ऐसे बॉस ढूंढे ना मिले इस ज़माने में। रजनी है ही ऐसी। सर का दिया हर कार्य बखूबी पूरा करती है,वह भी समय से पूर्व। एक हफ़्ते पूर्व सर का बेटा अखिल भी यू एस से आया है। आजकल कम्पनी का काम वही देखता है। पापा का रजनी पर इतना भरोसा देख उसे आश्चर्य होता है।
पापा हैं जो बेटे से अपनी इस कर्मचारी की तारीफ़ करते नहीं अघाते। रजनी
किसी काम के लिए ना नहीं करती। समय समय पर ऑफिस की सफ़ाई करवाना,पर्दे आदि की सेटिंग करना रजनी अपना घर ही मान कर करती है। अखिल के खयालों में उसकी गर्ल फ्रेंड रिया आ जाती है। वह रजनी को उससे बीस ही मानता है। हाँ पापा को बता चुका है कि उसके लिए लड़की ना ढूंढे। तभी उसे रजनी की आवाज़ सुनाई देती है, " सर, देख रही हूँ जब से आपके बेटे आए हैं दवाई समय पर नहीं लेते।आजकल चाय भी मीठी पीने लगे हैं।"
अचानक सर के मुहँ से निकल जाता है, " बेटी , तुम ब्याह कर दूर चली जाओगी जब कौन,,,,,।"
रजनी बीच में ही बोल पड़ती है , " आपकी बहु, और कौन ? "
अखिल मानो नींद से जागता है, " रिया को पार्टियों से फुर्सत कहाँ ?
वह चाय तक नहीं बनाती कभी। रजनी है भी कितनी समझदार,सलौनी सी व हँसमुख। उस दिन उसके घर खाने पर गए थे। उसकी मेहमान नवाज़ी में कोई कमी नहीं दिखी।"
अखिल दिलो दिमाग़ में चल रहे तूफ़ान को पापा से छुपा नहीं पाया ," जी पा पा , रजनी मुझे अच्छी लगती है। " पापा ने थाह लेते पूछा ," क्यों ? ऐसी क्या बात है उसमें ?"
वह शरमाते हुए बोलता है, " वह बिल्कुल गुलाब जैसी है। जैसे गुलाब खुशबू ही नहीं देता,उससे मीठा गुलकन्द बनता और दिखता भी सुंदर है।" सर की ख़ुशी का ठिकाना नहीं," मेरे बेटे बरखुरदार पहले क्यों नहीं बताया ?"
सरला मेहता
इंदौर
स्वरचित