कविताअतुकांत कविता
संवेद से संवेदनाए
संवेदनाएँ निःसृत होती संवेद से
मस्तिष्क की जटिल दुनिया से परे
स्वतः पल्लवित हो जाती हैं ह्रदय में
और उभरती रहती हैं अनजाने में ये
सुप्त जाग्रत दोनों अवस्थाओं में
समुद्री ज्वारभाटा की ऊँची लहरों सी
सतत डूबती उतराती ही रहती हैं
यूँ ही व्यर्थ क्यूँ बहाते हो बंधु इन्हें
दिल की अंजुरियों में भर सहेज ले
उतार दो कोरे पन्नों पे स्नेही लेखनी से
बहने लगेगीं नव सृजन की धाराएँ
ऐसी ही करामाती होती हैं संवेदनाएँ
सरला मेहता