कहानीलघुकथा
*काश बुद्ध सा कुछ करता*
" घर सम्भालूँ कि नौकरी करूँ,,, बिट्टू के स्कूल की मीटिंग में अलग जाना है " सुमेधा बड़बड़ाते हुए अपना व बेटे का टिफ़िन तैयार करती है। रिक्शा से बिट्टू को स्कूल छोड़ते ऑफिस पहुँचती है। पता चला आज भी बॉस ने लेट लगवा दिया है।
चाय की तलब लगने पर याद आया घर में दूध था ही नहीं। बिट्टू को देना जो ज़रूरी था। चाय को भूल फाइलें निपटाते दिमाग़ में विचारों का ज्वारभाटा चलने लगा, " सिद्धार्थ से प्रेम विवाह कर कितने सपने देखे थे। पति के पास काम नहीं होने पर भी दिलासा देकर उसके क्रिकेटर बनने के जुनून को हमेशा सराहा। हाथ खर्चा देती रही इस आशा में कि सब ठीक होगा। किन्तु एक रात बुद्ध की तरह सब कुछ छोड़ अनजानी राह पर चल चला गया। "
काम निपटाते वह उदास हो जाती है। तभी एक मित्र का फोन आता है, "सुमेधा, संयत होकर धैर्य से मेरी बात सुनना। पता चला है कि सिद्धार्थ लंदन में है। उसकी परिचिता सनाया वहाँ क्रिकेट क्लब चलाती है। सिद्धार्थ उसके साथ काम करता है। वह जल्द ही उससे शादी करने वाला है, हेलो हेलो,,,।"
सुनीता फोन काटकर सोचती है, " अगर यूँ जाना ही था तो बुद्ध सा कोई काम कर बताता। मुझे कोई शिकायत नहीं होती।"
सरला मेहता