लेखअन्य
बकवास बाजियां चल रही हैं आजकल मन की। इसने सब इतना उलझा दिया हैं कि शब्द नहीं हैं बताने को .... यह इतना भी सरल नहीं... मुझ जैसा हैं सीधा सादा पर भीतर से उलझनों से भरा... बेवकूफ... ना समझ... नालायक सा।
आजकल मन पहले जैसा नहीं रहा। हाँ वही पहले जैसा जो आवारा सा था, पागल सा, बावरा...
पागल तो अभी भी हैं पर कुछ पागलपन कम हो गया हैं। मन पलट कर जवाब नहीं देता खुद को,, बस देखता रहता हैं चुपचाप सा... बेजान सा होकर...
अब यह बातों को गहराई से समझने लगा है.. झूठ भी बोलने सीख गया हैं और खामोशी की एक चादर ओढ़े बैठा हैं।
कभी कभी दिल करता हैं कि ये चादर मैं उतार दूँ फिर रहने देती हूँ कि ना... अभी नहीं
कुछ वक्त खामोश रहना भी अच्छा लगता हैं। खामोशियाँ मिलाती हैं हमें खुद से... उस शख्स से जो कही भीतर दुबक कर ..सबसे छिपकर बैठ गया हैं। एक चादर जो उसने ओढ़ रखी हैं वह अब फटने लगी हैं जगह जगह से .... पैबंद लगाना भी ठीक नहीं लगाता ऐसा लगेगा जैसे सपनों को कैद में डाल दिया हो।
वक्त की मार से मन की देह छिलने लगी हैं अब... घायल परिंदा अब भी उड़ान भरता हैं दूर तक जाता हैं... कभी सागर की गहराई नापने तो कभी किसी पहाड़ पर बैठकर देखता रहता हैं दूर दूर तक फैले कोहरे को...
मेरे मन में जो "तुम" हो ना वो " तुम " बस मुझ तक ही सीमित हो। उसका कोई साया नहीं हैं... कोई आवाज नहीं हैं... कोई आकार भी नहीं हैं .... वह बस हैं कही ना कही इतना मुझे पता हैं।
मेरे ख्यालों में ही सही पर... कही तो हैं ना
मैं उसी ख्याल के साथ देखती हूँ तारों भरी रात को... बात करती हूँ जुगनुओं से और खामोश हो जाती हूँ कि मेरे भीतर जो " तुम " हो वह आवाज देगा, पुकारेगा मुझे।
मैं चाँदनी रात में देखती हूँ भागते हुए चांद को जो सबसे दूर अकेले कही आया हैं .. वह अकेलापन महसूस कर सकती हूँ मैं.. . . और तब मेरा मन जो खामोशी से सब देखता रहता हैं वह भी बोल उठता हैं कि... रोक लो इस सितमगर को... यह जाने ना पार दूर कही।
अब अगर गया तो शायद लौटने के तमाम रास्ते बंद हो जाएंगे।
वह मन और " तुम " शायद एक ही हो जो चुरा लेते हैं अल्फाज कभी तन्हाई में, खामोशी में ..... रतजगे में... चलते हुए... कही रोते हुए...
कही डूबते सूरज के साथ डूबो देते हैं खुद को एक सागर में और जब लहरों किनारे पर आते हैं तो सब बदला सा होता हैं।
मैं नहीं जानती कि कितनी दफा डूब कर उसे पार आना हैं और शायद वह आ भी ना पाए...
कई सारे सवाल हैं जिनका जवाब मेरे पास नहीं हैं। मेरे हिस्से सिर्फ और सिर्फ खामोशियाँ हैं....
जो कभी चिखती हैं... कभी चिल्लाती हैं... कभी कही दीवार से टकरा कर गिर पड़ती हैं वही कमरे में...
इतना सब होने के बावजूद भी मैं उम्मीदों की छत पर चढ़कर हर रोज ख्वाब जरुर देखती हूँ ...
कभी तितली से कहती हूँ कि वह मेरे संदेश दे आए फूलों को कि पतझर में मुरझा कर गिर जाओ तो भी महक बरकरार रखना ...क्योंकि उनका काम ही महकना हैं।
किसी पंछी से कहती हूँ कि वह जाकर बादलों से यह कर दे कि भले ही मैं उनको छू ना सकू पर... जब वो बरसने आएंगे तो...... मैं उनका एक टुकडा़ चुरा कर अपने कमरे में बंद कर दूंगी.... और जब मन करे तब उसे बरसने को कहूंगी.... और
भीग जाऊगी.... तब शायद सब जान पाए कि...... बिन मौसम के भी बरसात आती हैं ...
मैं समंदर किनारे जाकर उससे कहती हूँ कि तुम सब डूब भले ही जाए पर... अंत में सब किनारे पर ही आएंगे ... ... फिर चाहे वह किसी की आँखो में
डूबा हो या के नशे में.... क्या फर्क पड़ता हैं।
मन तो एक ही हैं पर इसकी भी काफी सारे परतें हैं। परत दर परत यह और भी रहस्यमयी हो जाता हैं... उलझा सा देता हैं मुझे। पर मैं इसके छलावे में नहीं आती... क्योंकि मैं जानती हूँ कि यह मेरे ही किसी ख़्याल का एक हिस्सा हैं.... और देर सवेर मुझे इसे अपनाना ही होगा।
और जब कभी दिल और दिमाग का द्वंद्वयुद्ध होता हैं तब मैं इनसे छिपकर भाग जाती हूँ बचपन की किसी गली में..... जहाँ किसी नुक्कड़ पर मेरी टोली मेरा इंतजार कर रही हैं ..... मुस्कुराते चेहरे और वो नूर ...अब भी इस दुनिया के लोगों ने सबसे बचा के रखा हैं।
और जब मन इन रास्तों पर निकल पड़ता हैं तो वह वापस नहीं आना चाहता.... मैं भी चाहती हूँ कि वह लौटकर ना आए इस वक्त में वापस.. जहाँ सिर्फ एक टीस हैं.. एक उदासी हैं.... एक अकेलापन हैं और सब कुछ होते हुए भी एक अधुरापन सा हैं....
और मेरे मन में बसा वो " तुम्हारा " एक कोना... जिस पर सिर्फ मेरा हक हैं वो भी... वक्त के साथ गुमनाम सा हो रहा हैं।
पागल मन और पागल हो इससे बेहतर हैं मैं खुश रहूँ और सवाल ना करू खुद से.. मेरे मन में बसे " तुम से "....
जवाब शायद मिल जाएंगे और ना भी मिले तो कोई गम नहीं ...और जब ये ख्याल आता हैं तो फिर से पागल मन कहता हैं कि सब खिड़कियां, दरवाजे, ताले तोड़कर फुर्र हो जाना.... हवा के साथ
मैं मिलूंगा तुम्हें उसी ठोर पर जहाँ सब अपने अपने शरीर के वस्त्र त्याग कर निकल पड़ते हैं एक अनजाने सफर पर..... जो फिर कभी खत्म नहीं होता।
सु मन
#एकइडियटकेडायरीनोट्स
24/5/2021