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मैं आसमानी चदरिया - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

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मैं आसमानी चदरिया

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मैं आसमानी चदरिया

संसार में जब भी विशालता की उपमा दी जाती है,सर्वप्रथम मेरा ही नाम आता है। धीरज व गम्भीरता गुणों की तुलना मुझसे ही की जाती है। हुऊऊ,,,उन बड़बोले पर्वतों की ऊंचाई के सब दीवाने हैं किंतु मेरी ,,,,इस
गहराई का किसी को अंदाज़ नहीं। इस धरा पर मुख्य महासागर हैं--सबसे गहरा शांत प्रशांत महासागर,
अटलांटिक,बर्फ की चादर उत्तर में आर्कटिक और हमारे हिंदुस्तान के चरण पखारता हिन्दमहासागर।इनके अलावा कई छोटे बड़े समुद्र धरती के नक्शे पर देखे जा सकते हैं।
पृथ्वी का क़रीब तीन चौथाई भाग मैंने ही घेर रखा है।
पता मैं इतना अथाह क्यूँ हूँ ?
नीलाभ नभ में जब श्यामवर्णी बादल भरी गगरिया ले दौड़ पड़ते हैं,टकराते हैं एक दूजे से।और भर देते मेरी गोद लबालब। मेरी पारदर्शी देह चुरा लेती है
अपने पिता आसमां का लुभाता आसमानी रंग।कभी हिमपुत्र बन श्वेत बर्फीली चादर भी निर्मल नीर का उपहार दे देते हैं।पर मैं आसमानी आभा को नहीं त्यागता।
समस्त जीव मात्र मुझ पर पलते हैं। समन्दर के तले में कई बेशकीमती ख़ज़ाने समाए हैं। गोल गोल मोतियों के अलावा और भी कीमती पत्थरों की मैं खान हूँ। सामुद्रिक जीवों पर कई अपना पेट भरते और पालते हैं।मेरे अंदर प्रकृति का सुन्दर संसार समाया है।बस जिन देखा तीन पाइयाँ।
अरे रे,,, मैं पुरातन काल से आवागमन का साधन रहा हूँ।
भारी माल धोना मेरे बाएँ हाथ का खेल है। कोलम्बस जैसे कई खोजकर्ताओं ने मेरा ही सहारा ले इस गोल दुनिया को नापा है। मेरी कोखमें टाइटेनिक जैसे कई जहाज़ों का मलबा बिखरा है जो साक्षी है कई सभ्यताओं का।
हाँ, मैं एक बात से बहुत दुखी हूं कि मेरा जल खारा है। किंतु कई अरब देश इसे मीठा बनाकर अपनी जरूरतें पूरी करते हैं।
मैं कई प्राकृतिक गतिविधियों
की भी कर्मभूमि रहा हूँ।
ज्वारभाटा ग्रहण आदि मेरी ही दें हैं।
मेरे ह्रदय में छुपी गरम ठंडी जल धाराएं जलवायु को प्रभावित करती हैं। अरे भई, भूल गए पूरी धरती माँ को बारिश का तोहफ़ा दे हरी चूनर ओढा देता हूँ। हां हां,जल भरी हवाएं मेरे ही घर से बहती हैं। पर क्या करूँ , पूरा अहसान ये पर्वत ले लेते हैं,मात्र टकराकर।
मैं सच विकल भी हूँ
दिनोंदिन बढ़ते प्रदूषण से।मुझे भी कूड़ादान बनादिया है। मैंने तो केवल अपनी पुत्रियों को समाने का ही दायित्व लिया था।
मैं प्रहरी हूँ तटों का । मुझे नीला ही रहने दो। मटमैले रंग मुझे जरा भी पसन्द नहीं।
सरला मेहता
इंदौर
स्वरचित

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