सुविचारभक्तिमय विचार
सीता नवमी पर जानिए सीताजी के वन गमन के गूढ़ रहस्य।
आधुनिक समाज में कुछ लोग भगवान् श्रीरामको दोष देतेँ है कि “श्रीरामने लोकोपवादके चलते गर्भवती पत्नी को त्याग दिया ,कैसे पति थे राम जिन्हें अपनी पत्नी पर विश्वास भी नहीं था ”
पर माता सीताने कभी श्रीरामजी को दोष नहीं दिया ,उनके राम उनके हृदय मन्दिर में सदैव विराजमान रहे –
कहते हैं कि एक रजकके कारण लोकोपवाद फैला कि सीता रावणके साथ रहकर आयीं और रामने स्वीकार कर लिया , किसने देखा सीताका हरण होते ? कौन था उस समय साक्षी ? ऐसे भीषण प्रश्न जिनका समाधान रामजी को करना था । रामजीके पास 2 विकल्प थे पहला प्रजाका दमन करें जो लोकोपवाद कर रहे हैं और दूसरा प्रजामें ये प्रचारकिया जाए कि सीता निर्दोष हैं ,अग्नि परीक्षा दे चुकी हैं सीता ।
पहला विकल्प श्रीरामको मान्य नहीं ,प्रजाका दमन एक न्यायप्रिय राजा नहीं कर सकता।दूसरे दमन करने से आंदोलन बढ़ता ही है समाप्त नहीं होता तो सीताजी के विषय में आंदोलन बढ़ता ही जाता । दूसरे विकल्प में राजकीय प्रचार ही माना जाता (प्रोपोगेंडा ही मानती प्रजा) ,श्रीराम शासक हैं अपनी तरह राजकीय प्रचार कर रहे हैं कि सीता निर्दोष हैं इस तरह तो राजकीय प्रचार करके भी सीताजी पर सदैवके लिये कलंक लगा रहता । दोनों ही विकल्प सीताजीके अपवाद को समाप्त करने में समर्थ नहीं थे । फिर कौन सा विकल्प था निर्दोष सिद्ध करने का ?
यदि कोई ऋतम्भरा प्रज्ञा सम्पन्न महर्षि , जो राज्याश्रयसे रहित हो वह ये कहे कि सीताजी निर्दोष है तब प्रजा अवश्य विश्वास करेगी ,क्योंकि ऋतम्भरा प्रज्ञा सम्पन्न महर्षि त्रिकालज्ञ होते हैं कभी झूठ नहीं बोलते इसलिए प्रजा ऋषियोंकी बात कोअक्षरशः सत्य मानती है।। श्रीरामकी दुविधाको सीताजी समझ गयी। वे यह भी चाहती थीं कि उनके जन्म लेने वाले पुत्र महलोंके सुख भोगमें न पलकर तपस्वी ऋषियोंके यहाँ पलें जिससे वे महान् व्यक्तित्वके स्वामी बने । महलोंके सुखों भोगोंमें पलने वाले प्रजाके कष्टोंको नहीं समझ सकते । इसीलिए सीताजीने श्रीरामसे कहा -“वे गङ्गातट पर रहने वाले फलमूल खाने वाले तपस्वी महर्षियोंके दर्शन करना चाहती हैं ,उनके समीप रहना चाहती हैं !” ( उत्तरकाण्ड ४२/३३-३४)
जो ये कहते हैं कि श्रीरामको ज्ञात नहीं था कि वनवासके समय सीता कहाँ हैं, उन्हें इस प्रसङ्ग पर ध्यान देना चाहिये ।। भगवान् श्रीरामजी ने सीताजी को त्यागा नहीं अपितु उन्ही ऋतम्भरा प्रज्ञा सम्पन्न महर्षि वाल्मीकिके आश्रममें छुड़वाया जिनके वचन को प्रजा अवश्य सत्य मानेगी ! श्रीराम लक्ष्मणसे कहते हैं -“गङ्गाके उस पार तमसातटपर महात्मा वाल्मीकिका आश्रम है उसी निर्जन वन में सीता को शीघ्र छोड़ आओ !” (उत्तरकाण्ड ४५/१७-१८)
जो ये कहते हैं कि श्रीराम नहीं पता था लवकुश उनके पुत्र हैं उन्हें इस प्रसङ्ग पर ध्यान देना चाहिये – “जब वृद्धा स्त्रीयाँ इस प्रकार रक्षा करने लगीं ,उस समय आधीरात को श्रीराम और सीताजीके नाम,गोत्र के उच्चारण की ध्वनि शत्रुघ्न जीके कानोंमें पड़ी । साथ ही उन्हें सीताके दो सुंदर पुत्र होने का संवाद प्राप्त हुआ । तब वे सीताजी की पर्णशालामें गए और बोले “माताजी ! यह बड़े सौभाग्यकी बात है !” (उत्तरकाण्ड 67/11-12)
यही नहीं अश्वमेध यज्ञके समय अयोध्या जाते समय भी शत्रुघ्न सीताजी से मिलने गए थे और उस रात्रि उन्होंने लवकुशके मुखसे रामायणका गान सुना था !(उत्तरकाण्ड 71 वा सर्ग )
अब आप स्वयं ही विचार करें कि यदि रामजी ने सीताजी का त्याग कर दिया था ,तब उन्हें वाल्मीकिके आश्रम क्यों भेजा था ? यदि रामजीने सीताजीका त्याग किया था, तब शत्रुघ्न लवकुशके जन्म पर और पुनः अयोध्या आते समय क्यों माता सीता से मिले ??? अर्थात् रामजी ने सोच विचार कर ही यह लीला रचाई थी और सीताजी की इच्छाके अनुसार यह सब किया गया था । वे अपने पुत्रोंको तपस्वी मुनि के आश्रम में रहकर योग्य शिक्षा दे रहीं थीं जिस बात का ज्ञान श्रीराम और उनके भाइयोंको भी था और मिलते भी रहते थे । श्रीसीतारामकी बहिरंग लीला सबको ज्ञात है कि रामजीने सीताको वनवास दिया था किन्तु अन्तरंग लीला जिसमें सीतारामजी कभी अलग हुए ही नहीं यह सब लीला सीता जी को निर्दोष सिद्ध करने के लिये और पुत्रोंको योग्य शिक्षा देने के लिये की गई थी।
जय श्रीसीतारामजी