लेखसमीक्षा
कविवर नरेंद्र सिंह नीहार का कोरोना कालीन साहित्य: संदर्भ एवं विमर्श" नामक पुस्तक में डॉ पूर्णिमा उमेश ने नरेंद्र सिंह नीहार जी के द्वारा कोरोना काल में किए गए विविध लेखन विधाओं के सभी पहलुओं पर भली-भांति प्रकाश डाला है। कहा जाता है 'जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि' नरेंद्र जी की कलम ने इस बात को चरितार्थ करते हुए समाज के हर छोटे-बड़े पहलुओं को, कभी संवेदनशील तरीके से तो कभी अपनी स्वाभाविक चुटीले अंदाज में बयां किया है। संवेदनाएं लिखना और आंखों में आंसू लाना आसान होता है, मुश्किल है तो किसी रोते हुए को हंसाना और इस काम को बखूबी अंजाम दिया है नरेंद्र जी ने अपने हास्य व्यंग लेख एवं कविताओं के माध्यम से। उनकी रचनाओं एवं लेख में इसका प्रयोग स्पष्ट देखने को मिलता है "पंख विदेशी और स्वदेशी चढ़कर आई यह बीमारी संकट में डाला हम सब को बंद हुई है सभी सवारी" इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने कोरोना काल के गंभीरता को बताने का प्रयास किया है, तो वही उन्होंने कोरोना काल में क्या खाएं क्या पीएं इस पर भी प्रकाश डालती कविता- 'कसरत करना हंसना और मुस्काना जैसे अदरक तुलसी सोंठ सुबह-शाम चाय बनाना पीना थोड़ा-थोड़ा आदि रचनाएं । बाल मनोविज्ञान को समझते हुए उन्होंने जो बाल कविताओं की रचना की है अत्यंत रोचक एवं प्रेरणादाई है -"मिलना-जुलना बातें करना मानव मन की मजबूरी है, वक्त ने लक्ष्मण रेखा खींची संयम बड़ा जरूरी है।" ऐसी रचनाएं नरेंद्र सिंह नीहार जी ही कर सकते हैं, उनकी एक रचना फोनवा तीरथ धाम हो गया- "छूटे से भी ना छूटे फोनवा तीरथ धाम हो गया धर्म कर्म और मर्म यही अब तो आठो याम हो गया।" के माध्यम से उन्होंने वर्तमान समय में हर किसी के लिए मोबाइल के आवश्यकता पर प्रकाश डाला तो वहीं 'जीभ चटोरी बड़ी निगोड़ी, मांगे मोर पनीर पकोड़े' लिखकर घुटन भरे मौसम में जबकि सभी तरफ तनाव व्याप्त है लोगों को हंसाने का प्रयास किया है, वहीं वे लिखते हैं कि-" सूखे अधर कंठ था प्यासा प्राण बसे थे वाइन में सारा देश लगा है मानो अब ठेके की लाइन में"।
आज की युवा पीढ़ी की व्यथा को समझते हुए नव वर-वधू को आशीर्वाद स्वरुप उन्होंने कुछ पंक्तियां लिखी कि- दूल्हा-दुल्हन वर-वधू पक्ष में बात हुई फिर आगे डेट बढ़ा दी टस से मस न हुई नवेली मानी नहीं मनाई लॉकडाउन में अपनी शादी अनलॉक कराकर मानी। नरेंद्र जी के प्रसिद्ध पात्र बाबा चिरकुटानंद के माध्यम से उन्होंने सावन की रिमझिम में रिप रिप का संगीत बाबा की कृपा में जीतेग लिखकर वर्तमान काल के बाबाओं के विषय में बताने का प्रयास किया वहीं उन्होंने गरीब मजदूरों के व्यथा को दर्शाती कविता- "पैदल साइकिल रिक्शा लेकर
सिर पर रख सामान चले
भूखे प्यासे बच्चों के संग
थके पांव मुख मालिन चले" रचना के माध्यम से कविवर नीहार जी ने श्रमिक वर्ग के ऊपर कोरोना के कारण हुए क्रूरता का बड़े ही मार्मिक ढंग से चित्रण किया है। उन्होंने अपनी एक बाल कहानी "लाॅकडाउन के मजे" के माध्यम से भी बताने का प्रयास किया कि जानवरों में भी किस तरीके से कोरोना का डर समाया हुआ है बंटी बंदर- "भाई हमारा सुंदरवन तो नहीं आएगा कोरोना की चपेट में?" और इन सब के हल स्वरूप उन्होंने लिखा कि -"सोचता हूं किसी गांव में नई कुटी बनाई जाए शहरी जीवन में अवसर सूख रहे हैं"।इनके साहित्य की यदि बात करें तो उसकी भाषा शैली सहज, सरल एवं सुंदर है । मुहावरों का प्रयोग लेखन को रोचक के साथ-साथ ज्ञानवर्धक भी बनाता है ।
"कविवर नरेंद्र सिंह नीहार का कोरोना कालीन साहित्य :संदर्भ एवं विमर्श"नामक पुस्तक एक संपूर्ण इतिहास समेटे हुए हैं, इस पुस्तक के रूप में कोरोना काल का इतिहास संचित करने का एक प्रशंसनीय कार्य किया है डॉ पूर्णिमा उमेश जी ने। मैं उन्हें इस उत्कृष्ट लेखन तथा उनके उज्जवल भविष्य के लिए शुभकामनाएँ देती हूं।
समीक्षक
डॉ ममता श्रीवास्तवा(सरूनाथ)